...

1 views

एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त का अन्त कैसे हुआ था।।85
मनु की भूल , अपराध तथा गुहानो से ग्रस्त रोगिन सत्री केवल बैकुनडी रीढ़ा बनकर भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाएगी क्योंकि उसे श्रृजनिका का किरदार निभा कर अपने अस्तित्व को अपनी इज्जत त्याग बलिदान मूल्य समर्पण देकर बचाना ही होता है ,जिस कारण मया (श्री हरि) और प्रेम (राधा) एक साथ ही वास करते हैं, क्योंकि यह दोनों एक दूसरे का सार है , जिसमें बिन मया प्रेम नहीं है और बिन प्रेम मया नहीं है ,जिसके कारण मया अनन्त काल तक प्रेम का सार बनकर अनन्त काल तक चलती ही रहेगी ।।
और काभी मिलन ना पाकर भी वो फिर वह एक दूसरे का सरवसत्र होकर बैठकुन्धाम में वास करते इस गाथा का सार अस्तित्व बैठकुन्धाम पूर्णतः मौजूद हैं ।।
वह दोनों ईश्वर ज़रूर है मगर वह दोनों विराह विलाय स्मृतियों का भोग करके बहुत समय के बाद एक होकर अस्तित्वनिका के अस्तित्व की रचना कर अस्तित्व की आसीमता में बैठा पाए ,इस लिए यह गाथा योनियो के असंभव इसलिए है क्योंकि वह योनि यह समझ ही पाती की प्रेम और मया ही अस्तित्व के श्रृजहार और योनि में जीवन स्त्रीलिंग रोटी सजाने के पीछे जाती है और पुल्लिंग जीवन भर जरम्भोगम् के अस्तित्व को तोडकर अस्थाई होकर प्रेम से अर्जित वासना को भी अपनी इच्छा तथा हवस के चलते वासना को मिलकर अस्तित्वनिका बांसुरीया बेलिया के अस्तित्व का नाश उसे भी अपने साथ इस जीवन की सजा अनन्त के लिए बुलाकर कालचकृ को खंडित होने से बचाकर वह मया तथा प्रेम से अस्तित्व को रूह द्वारा ना
प्राप्त उसके उसी की आस देकर ललाहित यह गाथा अनन्त कर कालचकृ को कर्महीन होकर खंडित अस्तित्वनिका के अस्तित्व से कालचकृ
निरंतर चक्राणी भवानि भया।।
#अनन्तहीअन्त
#सामाप्त
© All Rights Reserved