...

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दिल के घोड़े
सर्द मौसम की रात थी... कुछ शीतल बयार सी तो कुछ ठंडी फुहार सी ये संदली हवा मुस्कुरा रही थी...
मेरे कमरे की खिड़की से आती और मुझे जगाती फिर लौट जाती अपने आशियाने में....इस बार एकाएक आई और मेरे बिस्तर के पास आकर बैठ गई...कहने लगी उठो! देखो इश्क़ आया है इस सुनहरी चाँदनी की पीठ पर बैठकर....
बुला रहा है तुम्हे अपने अधबने से,अधजले से ख़्वाबों को मुकम्मल करने... गा रहा है...

सुलग रहा है मुझमें धुआँ जो वफ़ाओं का,
बुझा दो इसे चलाकर जादू इन अदाओं का,
ये शोखियाँ,ये तबस्सुम यूं ही बिखरने दो,
बहने दो ये सिलसिला बहकती निगाहों का..!

कुछ तिलस्मी सा अहसास हो रहा था और ये दिल उस संगदिल सदा के साथ चले जा रहा था,
समन्दर की राह में, इश्क़ की छाँव में, मन मेरा बिन पैर,बेपरवाह हुए उड़े जा रहा था.....
एक ऊंचाई पर ऐसा लग रहा था मानो ये सब हक़ीकत है और मेरा दिल ज़ोरों से धड़क धड़क कर गवाही दे रहा था......पर मेरा दिमाग़ कह रहा था .....

जी लो जी भर के इस पल को,
फिर ना आए तो हैरानी ना करना,
ये सब तो मन का ही खेल है यारों,
दिल में फिर ख़्याल आये तो अर्ज़ानी ना करना..

ये दिल जो इतने घोड़े दौड़ाता है,
उन्हे कभी भी किसी भी सूरत में ढालना हमारे हाथ में है पर गर घोड़ों की लग़ाम हमारे हाथ में है।
एक बार जो लग़ाम छूटी तो दिल और उसके सारे हक़ फिर किसी और के हाथ में होंगे...और आपके हिस्से आयेंगे बस यही सुनहरे सपने..😴
जो अपने होकर भी आपको पराए ही लगेंगे!!

तो ये थी मेरी पहली काल्पनिक कहानी...
जो पूरी तरह कल्पनाओं में गढ़ी गई है...
अगली बार एक वास्तविक स्वरूप से मेल खाती रचना से रूबरू करवाने के लिए फिर हाज़िर होती हूं.....
till then hanste rahiye😊
likhte rahiye..✍️

- Rachna Surili
© Tarana 🎶