...

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कहानी जिंदगी की.....
कुछ हारी सी मैं हूँ, कुछ टूटे से सपने मेरे......
कुछ जिन्दा लाश सी,
कुछ निकलती साँसे मेरी....

दोपहर 12 बज रहे थे मैं कॉलेज की library में बैठी पढ रही थी तभी मैं आपने विचारों में खो गयी। एक पल में पूरी जिंदगी के बिना सही जाने वाले दर्दो से सामना हो गया। कुछ जिंदगी की धोकरे नजर आने लगी।

करना बहुत कुछ है, पर रास्ता नज़र आता नहीं। ना जाने कितनी रात जागी हूँ अधूरे सपने बुन्ने के लिए, पर कोई है ही नहीं जज़्बात मेरे सुनने के लिए।
लोगों के लिए बहुत आसान है कहना की खुश रहा करो पर उन्हें कैसे बताऊ अपनी बेबसी की वजह।
पूछ लेते हैं लोग कि इतना मुस्कुराती क्यूँ हो कैसे बताऊ उन्हें की मुस्कुराती हूँ बस अच्छा दिखने के लिए।
जिम्मेदारी सपनों पर भारी पड़ने लगती है जब मैं सपने कम कर देती हूँ जिम्मेदारी उठाने के लिए।
दिल की चीखे सुनी नहीं जाती, मैं आँखों को समझा लेती हूँ, सबको दिखाने के लिए।
विश्वास का नाम ले, लोग दग़ा कर जाते हैं ,
बस timepass के लिए।
नफरत हो जाती है जिंदगी से कई बार ,
पर लोग कहते हैं जिंदगी इसी का नाम है मेरे यार.........

© श्वेता श्रीवास