भावना:– एक खेल संतुलन का
समय के साथ साथ जन्म के बाद जैसे धीरे धीरे चेतना बढ़ती है उसी तरह भावनाएं भी बढ़ती रहती है।इन भावनाओं को संतुलन में रखना उतना ही आवश्यक है जितना चेतना की विकास करना। हर व्यक्ति के अंदर भिन्न भिन्न प्रकार के भावनाएं मोहजुद रहती है। इस पूरे संसार में भावनाओं के आधार पर दो तरह के व्यक्ति वास करतें हैं। एक तरह के लोग वो होते हैं जो भावनाएं अपनी हिसाब से प्रकट करतें हैं और दूसरे प्रकार के लोग वो होते हैं जो भावनाओं के हिसाब से अपनी बात प्रकाशित करतें हैं।
हमारी भावनाएं लगभग हर तरफ से बाहर की चीजों पर निर्भर करतीं...
हमारी भावनाएं लगभग हर तरफ से बाहर की चीजों पर निर्भर करतीं...