...

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तुम्हारे नाम सा
सुनो सोचा बता देती हूं तुम्हे,कहीं बुरा न मान जाओ तुम।
आज भी दिल कुछ देर के लिए रुक जाता है
धड़कने ठहर जाती हैं एक लम्हें के लिए
जब तुम्हारा सा नाम पढ़ती सुनाती हूं कहीं।
ऐसा ही वाकया हुआ आज भी मेरे साथ।
जानते हो,बिलकुल तुम्हारे नाम के किसी शक्स ने फेसबुक पर फ्रेंड–रिक्वेस्ट भेजी।
मैं नाम पढ़ा और दिल की धड़कनों की रफ्तार
इस कदर बढ़ गईं मानो किसी रॉकेट को चांद तक छोड़ कर आना हो इसे।
हां ये पता था की तुम नहीं हो, बस तुम्हारे से नाम का कोई और है।
मैंने प्रोफाइल खोला,इत्मीनान से पढ़ा।
उसे भी लिखने का शौक है मालूम होता है।
तुम्हारी तरह नहीं,अच्छा लिखता है।
सोचा तो ये था की डिक्लाइन कर दूंगी रिक्वेस्ट को।
तुम क्या तुम्हारे नाम का भी कोई नहीं चाहिए मुझे मेरी जिंदगी में।
दोस्त क्या दुश्मन भी नही चाहिए।
फिर उसे पढ़ा,एक के बाद एक पोस्ट पढ़ीं उसकी बड़ा समानता लगी मेरी उसकी लिखने की शैली में।
एक्सेप्टेड का बटन दब गया हाथ से।
ना चाहते हुए भी,तुम्हारे नाम का एक दोस्त बनाया है।


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