...

11 views

में उड़ सकता हूं!
मैं सुबह उठकर दूध लेने के लिए डेरी जा रहा था।
आज आसमान कुछ डिम सा लग रहा है
शायद ऊपर वाले ने अपने फोन की ब्राइटनेस थोड़ी कम कर दी है
आज सड़क पर पड़ी धूल अपने पंख फैलाए किसी का इंतजार कर रही थी।
मौसम हल्का नीला सा हो गया।


मैं उस धूल को निहारते हुए सड़क पर चले जा रहा था और आज मुझे कुछ अजीब लगा


मुझे अपना शरीर बहुत हल्का लगने लगा मानो मेरा शरीर रुई का बन गया हो।
मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा ।
मुझे अपने गले में और अपने शरीर में अजीब सी कपकपी महसूस होने लगी।

अचानक से एक तेज हवा का झोंका आया
मेरा विशवास करो मैं झूठ नहीं बोल रहा
हवा का झोंका धीमी रफ्तार से मेरी तरफ आने लगा मानो कोई पुराना दोस्त मुझे गले लगाने आ रहा हो। उसने मुझे इतनी जोर से गले लगाया कि मेरा रूई जैसा हल्का शरीर
पीछे की तरफ जाता चला गया । मेरे पैर हवा में लहराने लगे ।

धीरे-धीरे हवा का झोंका मुझे अपने घर आसमान की तरफ ले जाने लगा ।

मैं डर गया ये क्या हो रहा मेरे साथ मैं कहां जा रहा हूं मुझे ऊंचाई से डर लगता है मैंने आंखें बंद कर दी वो मुझे उठा कर ऊपर और ऊपर बहुत ऊपर ले गया मानो में कोई कागज का टुकड़ा या अनाज का एक छोटा सा तिनका हु उसके लिए ।


वो मुझे समुंदर से उठी ओस की बूंद तरह
चारों दिशाओं तक फेलेे आसमान में जिसका कोई अंत आंखों से नहीं दिखता जहां हाथी से भी बड़े हवाई जहाज भी नीचे से चीटी की तरह दिखते हैं।
उस आसमान में मुझे उड़ाई ले जा रहा था।
और मैं एक कागज की तरह कभी उलटा कभी सीधा कलवाजीया खाते हुए ऊपर बहुत ऊपर ले जा रहा था । वो हवा का झोंका मुझसे गेंद की तरह खेल रहा था।


जब हवा के झोंके का मुझसे खेलते खेलते मन भर गया ।
मैंने हिम्मत करके आंखें खोलो।
जब आंखें खोली मेरी आंखें खुली रह गई मेरे सामने एक पहाड़ जितना बड़ा बादल आया।


पहाड़ जितना बड़ा सफेद चमकीला नरम रूई जैसा । हवा के झोंके ने मुझे कंधा मारा और मैं गुलाटी खाता हुआ उस बादल के अंदर घुस गया जैसे ही में बादल से टकराया मैंने अपनी आंखें बंद कर ली मुझे महसूस हुआ।

जैसे कोई नरम हल्की गीली रुई से मेरे गालों को छू रहा है।
एक आराम और गगुदगुदाहत से भरा टच।


उस अहसास से मेरा डर छूमंतर हो गया ।
में एक आजाद परिंदे की तरह आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगा।

में आजाद हु! में हर परेशानी से आजाद हु ।
दुनियादारी से आजाद हु। हर बंधन से आजाद हु।

में उड़ रहा हु।

मेने अपने हाथों को थोड़ा फैलाया और जोर से फटकाकर एक झटके से ऊपर बादल के पहाड़ की चोटी चीरकर ऊपर आ गया।

बिना मरे ही मेने जन्नत देख ली।

में अपने हाथो को स्थिर रखें एक दिशा में हवा में तैरने लगा।

में अभी रुका नही। बादलो की एक और सूरज किसी लाल संतरी गेंद के तरह रखा था।



में धीरे धीरे और ऊपर जाने लगा।
मुझे आज आसमान को नापना है।
मेने अपने हाथो को और फेला लिया। एक साज में ऊपर के और जाने लगा।

बादल से टकराकर हवा मेरे कानो में कुछ खुसफुसाने लगी जिसे में समझ नई पर था।

अचानक हवा को चीरती हुई एक आवाज सारे आसमान में वादियों की तरह गूंजने लगी।

जब मैंने देखा ठीक मेरे ऊपर मुझे विशाल परछाई महसूस हुई।
ठीक मेरे ऊपर मुझे दो बड़ी बड़ी आंखें दिखाई दी।

मेने अपने हाथो को समेटकर
नीचे कर लिया।
जैसे असेंबली में अटेंटेंशन
बोलने पर करते है।

में एक टूटते तारे की तरह नीचे गिरने लगा।
में हवा को चीरते हुआ नीचे की तरफ एक उल्का पिंड की तरह हवा को कटता हुआ नीचे कि तरफ बदलो के पहाड़ों की तरह गिरने लगा।

उठ !! उठ जा!!
सुबह हो गई ,उठ जा !!

जा जाकर डेयरी से दूध लेकर आ।

क्या ये सपना था!

नींद से भीगी आंखों को पोछकर ।
में सुबह उठकर दूध लेने के लिए डेरी जाने लगा।

मौसम हल्का नीला सा हो गया ।
सड़क पर पड़ी धूल अपने पंख फैलाए किसी का इंतजार कर रही थी।




ओर अचानक एक हवा का झोका आया.......


© abgi_rag poetries