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आज की कहानी, मेरे हमसफ़र की..
आज हर रोज़ जैसा ही था, सवेरे उठा, जो विचार मन में रात भर परेशान कर रहे थे, उन्हें मन नहीं था मेरा और ढोने का। समय निकाल कर काग़ज़ पर उतार रहा था, एक पल ऐसा भी आया, जब मैं अपने ही विचार के उधेड़ बुन में कब खो गया था पता ही नहीं चला, तभी अचानक फ़ोन बजा, देखा तो उसका फ़ोन था। उसके फ़ोन का इन्तज़ार तो मुझे ना जाने कितने दिनों से था, आख़री बार मुझे याद है, उसने मुझे जन्मदिन पर बधाई देने के लिए किया था। उसकी आवाज़ सुनी, ना जाने ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मेरी आत्मा शरीर में वापस आ गयी, फिर धीरे धीरे दोनों ने एक दूसरे के बारे में जाना, कि कैसे सब चल रहा है जीवन में । कुछ ख़ुशख़बरी, कुछ दुख हमने साँझा किया एक दूसरे से। मैं बेहद खुश था, जब उसने एक लंबे अन्तराल के उपरान्त नौकरी फिर से शुरू की। वो इतनी कुशल है अपने काम में, मुझे अच्छे से पता है, और उसे ऊँचाइयों पर देखना जैसे मेरा ख़्वाब था शुरू से ही।

ना जाने कितने कष्टों से उभरकर, आज अपने क्षमता के अनुसार वह इतनी अच्छी नौकरी में लग गयी थी, ऐसा लग रहा था मुझे जैसे भगवान ने मेरी आख़िर सुन ही ली। हमारी बातें कुछ अलग सी हैं, जहाँ कोई दीवार नहीं होती है, शायद यही वजह हम दोनों को एक दूसरे के क़रीब लाती है। कभी महसूस ही नहीं होता है, दोनों में किसी को भी, कि हम साथ नहीं हैं, बल्कि हर वक़्त ऐसा लगता है जैसे हमारा साया भी एक दूसरे के साथ ही रहता है। ख़ैर रुक रुक कर थोड़ी थोड़ी देर तक, ना जाने कितने घंटों बारे करते रहे हम दोनों, और ऐसा लगा जैसे हम साथ हैं एक दूसरे के, एक हमसफ़र जैसे। बातचीत में थोड़ा दोनों ही भावुक हो गये थे, आख़िर इतना गहरा लगाव जो है एक दूसरे से, और शायद हम हर स्थिती में दोनों साथ हैं। इतना अपनापन शायद मैंने कभी महसूस ही नहीं किया था।

साथ ना होने का दर्द हम दोनों को है, मगर एक आशा की किरण उसकी नौकरी के रूप में आयी है, जब वह ख़ुद के इरादे मज़बूत करके खड़ी हुई है। मैं भी ख़ुद को हर मायने में इतना काबिल बनाने में लगा हुआ हूँ, इसी उम्मीद में कि, वो दिन जल्द आयेगा, जब हम साथ रहने के अपने सपने को भी साकार कर पायेंगे, और इसी जीवन को फिर से एक नए सिरे से शुरू कर पायेंगे …

© सुneel