...

52 views

मेरी नाकामी ।
श्वेत,स्वच्छ और कलप से कड़क किए हुए कुर्ता पयजामा पहनने वाले बुज़ुर्ग के सम्मान में मेरा सिर तुरंत झुक गया वहीं मेले कचोटे वस्त्र धारण किए हुए ,पसीने में भीगते हुए वृद्ध मजदूर काका के समक्ष सिर झुकाने में हिचक का अनुभव हो रहा था। सिर झुकाया जरूर परंतु अपने आस पास नज़रे घुमा कर की कहीं कोई देख तो नहीं रहा, किसी ने देख लिया तो क्या ? एक शर्म का अनुभव हो रहा था। स्वयं से बड़े के सम्मान ने दृष्टिभेद ने आज मुझे स्वयं की नज़रों में गिरा दिया। आज समझ आया कि उचित व श्रेष्ठ कार्य में शर्म आना ही स्वयं में सबसे बड़ी ज़लीलियत व लज्जित करने वाला कार्य था। एक बुजुर्ग की स्वर्ण अंगूठियों की चमक व धूप में दूसरे बुजुर्ग के पसीने से चमकते कपाल की चमक ने आज नेत्रों को भ्रमित कर दिया। शायद आज के इस पाप के लिए में स्वयं को शायद ही क्षमा कर पाऊं। पर आज से यह वादा स्वयं से अवश्य कर लिया कि भविष्य में यह गलती दोबारा नहीं करूंगा और आपसे इसे बताने के पीछे लक्ष्य बस इतना है कि जो विशाल त्रुटि मुझसे आज हुई वो कभी आप ना दोहराए क्योंकि कुछ गलतियों कि चोट मन ,मस्तिष्क,शरीर व सम्मान पर नहीं लगती अपितु स्वयं की अंतरात्मा पर लगती है । यह चोटे एक ऐसा घाव दे जाती जो आजीवन के लिए अपने अस्तित्व पर शंका करने का विचार दे जाती है।

© vibstalk