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सफ़रनामा
#सफ़रनामा

ढाई से पचास का सफ़र करने के बाद भी लग रहा है कितना कुछ करना बाक़ी है कितनी ज़िंदगी जीना बाक़ी है।आज मेरे पसंदीदा व्यक्ति कॉमेडियन और शायर #ज़ाकिर_खान का शेर याद आ गया…

“अपने आप के भी पीछे खड़ा हू मैं,
ज़िंदगी कितना धीरे चला हूँ मैं |
मुझे जगाने और भी जो हसीन होके आते थे,

उन ख्वाबों को सच समझ कर सोया ही रहा हूँ मैं।”

बड़े भाई की शादी की फोटो और गोले में मैं।ज़िंदगी अपनी ही रफ़्तार से आगे बढ़ती रहती है।और हम सोचते हैं कि हमने ज़िंदगी को हरा दिया और ज़िंदगी से ज़्यादा कुछ कर लिया।फिर एक दिन आता है जब ज़िंदगी कहती है तेरा मेरा साथ यहीं तक का फिर मिलेंगे अगले सफ़र पर।तू ये सफ़र याद रख सका तो सबक़ याद रख लेना नहीं तो अगले सफ़र पर फिर अ आ इ ई पढ़ेंगे।मुझे #अहमद_नदीम_क़ासमी का एक शेर याद आ रहा है।

“कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा।”

इसलिए दोस्तों हंसी ख़ुशी ज़िंदगी बिताओ मिलते मिलाते रहो क्योंकि ज़िंदगी की शाम दरवाज़े पर ही खड़ी है।अब तो बस इस दिल में ये ही तमन्ना बाक़ी है…

“न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
आओ मिल लो गले के मौत को आराम हो जाए॥”

©️डॉ.मनीषा मनी

© Dr.Manishaa Mani