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"कादम्बिनी"
कादम्बिनी अपने नाम के अनुरूप तो नहीं थी,सांवली रंगत और बेहद साधारण नैन नक्श थे उसके "मगर उसके स्वर में जैसे रागिनी घुली थी, बेहद सुन्दर आवाज थी उसकी,पाक कला में भी अति निपुण थी वो।
उसनें परास्नातक होने के पश्चात एक कंपनी में नौकरी करने का फैसला लिया,और अब वो रोज सुबह ही घर से निकल जाती और शाम को ही वापस लौटती ।
इधर कादम्बिनी की माँ जल्द से जल्द उसकी शादी कर देना चाहतीं थी,मगर हर जगह उसकी सांवली रंगत आ जाती और कही बात नहीं बन पा रही थी।
इधर आफिस में रफीक नाम का एक लड़का उसे बहुत पसंद करता था और कादम्बिनी भी उसे पसंद करती थी।
फिर एक दिन रफीक ने कादम्बिनी से अपने प्रेम का इज़हार कर दिया,मगर जब कादम्बिनी को पता चला कि रफीक मुस्लिम है और उससे कुछ साल उम्र में छोटा है तो उसनें साफ इन्कार कर दिया,मगर रफीक के बहुत इसरार करने पर वो मना न कर सकीं,
इधर जब कादम्बिनी के माता पिता को इस बात का पता चला तो घर में तूफ़ान आ गया कहा एक बंगाली ब्राह्मण परिवार और कहा एक मुस्लिम परिवार कादम्बिनी की माँ ने साफ इन्कार कर दिया और पिता अलग क्रोधित थे।
कादम्बिनी खामोश हो गई उसनें नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बस अपने कमरे में गुमसुम पड़ी रहती और एक टक रफीक की फोटो देखती रहतीं
एक दिन कादम्बिनी के छोटे भाई ने सब कुछ देख लिया और मन ही मन एक फैसला कर लिया और दीदी का हाथ पकड़ कर उसे माता पिता के पास ले गया और बोला,"दीदी के लिए कितने हिन्दू परिवारों के लड़कों ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया "आज जब कोई दीदी को स्वेच्छा से अपनाना चाहता है तो आप लोग धर्म को लेकर बैठ गए।
अगर कोई हिन्दू लड़का शादी के बाद दीदी को मारे पीटें और उनका सम्मान और मोहब्बत न दे सके तो क्या आप लोग खुश रह सकेंगे?
माँ पिताजी रवीश की बातों से निरुत्तर हो गयें और उन्होंने हंसकर अपनी पुत्री को गले लगा लिया और वे विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गयें।
उधर रफीक के माता पिता भी राजी हो गयें।
आज रवीश की सूझबूझ और बातों ने कादम्बिनी की सूनी मांग और अधूरें स्वप्न को पूर्णतःका सुर्ख़ रंग दे दिया था ।


© Deepa