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एक खोज आत्मा की...प्रेम !!
एक खोज आत्मा की...प्रेम !!
प्रेम को खोजते खोजते तुम तक पहुंची हूं तो भला मेरे इस प्रेमकथा में तुम्हारा जिक्र कैसे ना हो।
मेरी इस प्रेमयात्रा का आरम्भ भले ही कहीं से हुआ हो किन्तु इसकी समाप्ति तुम पर आकर होती है।

इस प्रेम में हमें प्राप्त हुआ सन्तोष, जिसने मुझे आत्मिक सुख से परिचय कराया, और साथ ही जब प्राप्त हुआ मन की गहराई को मापने का सुअवसर तो पता चला कि प्रेम तो हमारे हृदय,हमारी आत्मा का मूल संस्कार है, ये मन में ठीक उसी प्रकार विराजमान है जैसे कीचड़ में कमल, मन जाने कितने ही विचारों से लिप्त है किन्तु हमारी प्रेममय आत्मा अपने स्वभाव से इसको बार बार स्वच्छ और सुंदर बना देती है और फिर जैसे कमल पर भगवान ठीक वैसे ही इस मन में पवित्र विचार रहते हैं, प्रेम आत्मा में सदैव ही विद्यमान रहता ही है, और मेरी इस...