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बचपन
चमेली - कोई मेरे साथ नही खेलता सब मुझे चिढ़ाते हैं कि मैं गंदी हूँ । मुझ में से बदबू आती है क्योंकि मैं जुग्गी में रहती हूँ । कोई भी मेरे साथ बैठकर मेरा टिफ़िन नही खाता और कोई भी मुझझे बात भी नही करता । क्या! झुग्गी में रहना बुरी बात होती है।

यूँही सोचते खुदसे बातें करते हुए वक़्त बीतता है और चमेली की स्कूल की छुट्टी हो जाती है और वो पैदल अपने घर को जाने के लिए निकल पड़ती है।

चमेली घर पहुँचते ही अपनी माँ से खिलखिलातें हुए लिपट जाती है।

माँ- अरे आ गई मेरा बेटा बता कैसा था स्कूल में आज का दिन तेरा। हलवा खाया तेरे दोस्तों ने। बताना क्या कहा सभी ने कैसा था हलवा ?

चमेली झूठी मुस्कुराहट चेहरे पर लिए कहती है।

चमेली- अच्छा था माँ सभी को बहोत पसंद आया सब कह रहे थे कि इतना अच्छा हलवा उन्होंने कभी नही खाया इतना खाया की मुझे ही कम पड़ गया ।

माँ- अरे क्यों उदास होती है। तेरे लिए हलवा बचाकर रख दिया था मैंने डिब्बे में, रुक मैं अभी लाती हूँ ।

चमेली और उसकी माँ दोनो हंसी-खुशी हलवा खाते हैं।

कुछ ऐसे सवाल जो आज भी नज़र अंदाज़ किये जाते है । कहीं कोई बच्चा

चमेली की तरह अकेला तो नहीं जहां इतने बच्चो के भीड़ में भी वो अकेली है।

बस एक घर ही था जहां उसकी माँ ही उसकी सब कुछ थी। उन बच्चों का कसूर तो है ही नहीं। उनमे ये गरीबी और अमीरी का फर्क का

बीज किसने बोया ।

आप लोग समझ ही गए होंगे माता-पिता से अच्छी शिक्षा हमे कोई दे ही नही सकता। क्या वो टीचर सही थी जिसने उसकी हालत को न जानकर उससे क्लास से बाहर खड़े होने को कहा?

क्या फटे जूते पहनना किसी का शौख होता है?

क्या किसी का गरीब होना ज़ुल्म है?

क्या स्कूल नहीं जानता होगा कि चमेली गरीब परिवार से है तो उसे नए जुते देना उनका फ़र्ज़ नही था हज़ारों बच्चें पढ़ते हैं स्कूल में सभी फीस देते है क्या उनमें से कुछ रुपयों से नए जूते खरीदकर नही दिए जा सकते थे।

समाप्त :