...

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और सूखती डाली हरी हो गई
घर में ख़ुशी का माहौल था ,लाड़ो का आगमन हुआ था !
बधाईयाँ बाँटी जा रही थी , बड़ी मन्नतों ,जतन के बाद उसका
जन्म हुआ था !
मासूम के रुदन पर मन चिन्तित ,किलकारी पर प्रसन्नता का भाव आता जाता था !

पंख लगाकर समय का पंछी उड़ता रहा ! गुड्डे गुड्डियों से खेलने का वक्त खत्म हुआ ! स्कूल में प्रवेश दिलवाया गया
और इस बीच कई उतारचढ़ाव देखने के बाद ,
माता पिता चिन्तित थे कि उसके दादा दादी के आँख मूँदने से पहले उसके हाथ पीले कर दिए जाए !

वर की खोज शुरू हुई जो दूर की रिश्तेदारी में जाकर खत्म हुई ! लड़का औसत पढ़ा लिखा था खाता पीता परिवार था !
लड़की यहाँ ख़ुश रहेगी यही सोचकर सारी रस्में पूर्ण करने का निर्णय लिया गया !
लड़की की और इच्छा थी कि पढ़े आगे बढ़े लेकिन भाव पर
परिवार भाव की जीत हुई और वह मन मसोसकर रह गई !
शहनाई ,ढोल ढमाकों के साथ नई जिन्दगी की आस लिए
लाड़ो नये परिवेश में संसार बसाने आ गई !

चलता रहा यादों ,वादों का कारवाँ ! और उसका अपना परिवार तीन प्यारी सी बेटियों का हो गया !
उसका पति पेशे से ड्राईवर था !
काम के सिलसिले में उसका अक्सर बाहर आना जाना होता ही रहता था !
न जाने कब गलत संगत में पड़ शरीर को रोग लगा बैठा ,
धीरे धीरे रोग बढ़ता गया ।इलाज़ में काफी खर्च के बावजूद
अन्ततः सबको रोता बिलखता छोड़ सुरेश वक्त से पहले
ही मर गया !

एक हँसता खिलखिलाता गुलशन माली के अभाव में उजड़ने लगा ! लाड़ो ने ख़ुद को संयत कर संभाला और
ढाल बनकर बालिकाओं की परवरिश में जुट गई !
रिक्तता ,अवसाद का घुन उसे सालता रहा और शाख शनैः शनैः सूरती रही ।

वह लड़ती रही ढाल बनकर !
इसी बीच एक झोंका ठंडी बयार का हाँ झोंका ही कहें आया और वह बहने लगी निरन्तर बिन सोचे बिन समझे ! न जाने कब वह उसके दिल में घर कर गया !

अब नई चुनौती उसके सामने खड़ी थी ,चूँकि एक तो वह विधवा थी दूसरे तीन तीन बेटियों का आर्थिक भार ,परवरिश का जिम्मा भी उसके पास था !
तिस पर समाज का विरोध ...
कौन आए जो खम ठोंककर उसका साथ निभाए ,परिवार नाते रिश्तेदार भी तो उसी समाज का हिस्सा थे !
संघर्ष जारी रहना था ,लड़ाई थी अपनों से ,ख़ुद की ख़ुद से !

भवितव्य देख ,अपनों को राजी कर ,अपने इरादों को पोषित कर ,कमर कस वह उठ खड़ी हुई नई जिन्दगी की चाह लिए ,
अपने जैसों की प्रेरणा बन ,और बँध गई पुनः अपनी शर्तों से ,अपने सामर्थ्य से खींचकर अपने हिस्से का
खनिज लवण प्रकाश और पुनर्जीवित हो रुक्षता को धता बताकर बढ़ती गई और सूखती डाल फिर हरी हो गई ।।

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