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तुलसी रहीम
श्री राम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी जब श्रीरामचरित मानस लिख रहे थे तब एक विपन्न वृद्धा उनके पास आई और उनसे अपनी दो युवा पुत्रियों के विवाह हेतु आर्थिक सहायता की याचना की। गोस्वामी जी ने कहा मैं तो त्यागी हूं,मेरे पास धन नही है। उसको दोहे की एक पंक्ति का पत्र लिख कर दिया और कहा कि तुम इसे जाकर दिल्ली में मेरे मित्र अब्दुल रहीम खानखाना को दे देना , वे तुम्हारी आर्थिक सहायता कर देंगे। तुलसीदास जीे ने दोहे की एक पंक्ति उस वृद्धा को लिख कर दी जो यह थी,
"सुरतिय नरतिय नागतिय, अस चाहत सब कोय।
वह वृद्धा इस एक पंक्ति में लिखे गए पत्र को लेकर दिल्ली में खानखाना से मिली। खानखाना ने पत्र पढ़ कर वृद्धा से कहा कि आप के कितनी पुत्रियां है?
दो। महिला ने जवाब दिया।
उनकी उम्र कितनी है?
महिला ने कहा बड़ी बीस की छोटी अठारह की।
खानखाना बोले क्या दोनो अविवाहित है?
हां। वृद्धा ने जवाब दिया।
खानखाना ने अपने गुमाश्ता को दो सौ स्वर्ण मुद्राएं उस महिला को देने का हुक्म दिया। वृद्धा जब खानखाना को धन्यवाद देकर जाने लगी तब रहीम ने उसको कहा कि यह पत्र गोस्वामी जी को दे देना। खानखाना ने भी दोहे की एक पंक्ति में जवाब लिखा जो इस प्रकार है।
"गोद लिए हुलसी फिरे, तुलसी सो सुत होय।
गोस्वामी तुलसी दास जी एवम अब्दुर्रहीम खानखाना दोनो की एक एक पंक्ति से एक दोहा बना जो इस प्रकार है:
"सुरतिय नरतिय नागतिय, अस चाहत सब कोय।
"गोद लिए हुलसी फिरे, तुलसी सो सुत होय।"
मेरा विश्वास है की आप गुणी पाठक जन इन पंक्तियों के भाव,अर्थ और मर्म को जानते है, अपनी अमूल्य टिप्पणी से पाठक समूह को लाभान्वित करें।