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सच?
कभी कभी लगता है हमारा जन्म ग़लत तरीके से हुआ है, जिस्म किसी और की आत्मा कहीं और जन्मा है।
तभी तो हम अनवरत भटकते रहते है खुद की खोज में,
इतनी बड़ी दुनिया में बस सिर्फ एक से ही इश्क़ होता है क्यों?वह भी एक उचित वक्त आने पर होता है।
हम ढूंढते रहते है ‌किसमें हमारी जान बसती है।
जब हम प्यार कर रहे होते हैं किसी से तो हमें लगता है कि हम पूरे अंदर से प्यार कर रहे हैं पर धीरे-धीरे जब दो दिलों का मिलन‌ होता है, तो हमें लगता है वो हममें समाए जा रहें है फिर विरह आती है, विरहिणी में असहनीय दर्द में पता चलता वो तो मेरी ही आत्मा है ।
तभी तो वो हमारे रिश्ते नाते‌ अपनाते है और मां से डरते है। बचपन से हर घटना हमारी ज्ञात कर जाते है।
फिर कुछ दिनों बाद वो दिखते नहीं जब मिलते है दोस्त से ही मिलते है हालत फिर वही। खुद की तलाश।
आत्मा का अदला-बदली पहले से थी या प्यार के बाद
कुछ समझ न आता। हां जब अपनी आत्मा लौटती है अपने चारों ओर अलौकिक प्रतीत होता है‌ हर काम बड़ी सहजता से हो जाती है पर दिखते नहीं है बस एहसास रहा।
जो पहले हर कोशिश नाकाम रहती थी या बहुत ही खुद को ढकलना पड़ता था। शायद उस वक्त न करना चाहता हो‌ क्योंकि वो मेरी आत्मा न थी इसलिए या फिर कहूं अब जो‌ प्यार हो जाने से एक दुसरे का काम आसानी से कर देते है।

कभी कभी लगता है हम तो एक ही आत्मा है जैसे आसमां से उल्का तारा गिरने से दो भाग में बंट गए हो।
तभी तो वो अधुरापन पुरा लगता है जैसेै कोई अपना मिला टुकड़ा हो उससे मिल जाने से।
पर ऐसा कैसे हो सकता है मरते हैं हम जब तो अलग-अलग मरते हैं कोई एक साथ थोड़ी न मरते हैं।

मुझे अपनी इस सोच पर विश्वास नहीं क्योंकि इतनी विशाल गड़बड़ परमात्मा कैसे कर सकते है?
ऐसा कैसे हो सकता है,अगर मेरा मर कर कभी आना हुआ तो लोग मुझे मेरी भूत को देखेंगे न कि दोस्त को। शायद मरते वक्त अपने जिस्म में मिलुंगी ।

दुसरी बात बहुतों की मुलाकात नहीं होती है पर प्रेम हो रहा होता है खुद से ,कई तो योग द्वारा अपनी आत्मा प्राप्त कर लेते है। खुद की तलाश में जाने और कितना हमें भटकना पड़ेगा।

उफ्फ पागल कर जाएगा यह सोच
पता नहीं क्या है सच्चाई?
गोलमाल है भई गोलमाल।
#suni
© Sunita barnwal