हर कश्ती का किनारा...!!!
रात का सन्नाटा था, आसमान में चांदनी बिखरी हुई थी। समंदर की लहरें हल्की आवाज़ के साथ किनारे से टकरा रही थीं। ऐसा लगता था मानो प्रकृति अपनी निंद्रा में स्वप्न देख रही हो। इसी सागर किनारे एक पुरानी कश्ती पड़ी हुई थी, उसकी लकड़ी अब पुरानी और घिस चुकी थी, लेकिन उसकी आत्मा अब भी जीवित थी।
कश्ती ने जीवन के कई सफर देखे थे। उसने खुशियों भरी...
कश्ती ने जीवन के कई सफर देखे थे। उसने खुशियों भरी...