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उनकी साया
             वैसे तो मेरा नाम " सिंदुरी " है, पर घर में प्यार से सब " लाली " कहतें है। कुछ दिन पहले ही मेरे बाबूजी ने "सुखीराम जी" के साथ मेरा लगन तय किया था। शुरुवात के दिनों में, मैं सुखीराम जी के बारे में, कुछ खास तो नहीं जानती थी पर हा जब बाबूजी माई को बता रहे थे सुखीराम जी के घर और उनके बारे में,मैंने तब छुपके से उनकी बातें सुन ली थी। बाबु जी ने माई से यही कहा था की सुखीराम का घर बार सब अच्छा है, लाली को बहुत खुश रखेंगे वो लोग। यह सुनते ही मैं शरमा सी गई ।
             इंतज़ार के दिन खतम हुए आज मेरा ब्याह सुखीराम जी से हो गया, बाबू जी का घर सुना कर , माइके का प्यार बटोरे आज विदा हो गई हूँ। सुखीराम जी को ही अपना सब कुछ मान उनके ही साथ उनके घर में प्रवेश...