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अमन की भूल
अमन का जन्म एक सम्मानित और पढ़े लिखे घर मे हुआ था। वो बचपन से ही पढ़ाई और खेल दोनों में अव्वल रहा था। उसने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि वो सेना में अफसर के रूप में जाना चाहता है। घर के संस्कार और सहारे ने उसके सपनो को और भी ताकत दे दी। वो अच्छे नंबरों के साथ परीक्षा तो पास करता ही तथा साथ ही खेल कूद में लगे रहने की वजह से चुस्त और तंदुरुस्त भी राहत था। एक तरह से कह सकते हैं कि वो पूरी तरह सेना का अधिकारी बनने में सक्षम था।
स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद उसने एक अकादमी में दाखिला ले लिया जहाँ शैक्षणिक के साथ साथ शारीरिक और मानसिक तरीके से भी छात्रों को सेना की परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है। वो बहुत मैन लगा कर मेहनत कर रहा था। उसने पारा मिलिट्री फ़ोर्स के सहायक कमांडेंट की परीक्षा का फॉर्म भरा। उसकी तैयारी में कोई कमी न थी इसलिए उसका चयन भी हो गया। उसे केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) में सहायक कमांडेंट का पद मिला।
ट्रेनिंग के बाद उसकी पहली पोस्टिंग कश्मीर में हुई। उसके ठीक बाद उसका तबादला छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हो गया। जहां उस समय नक्सलवादियों का घोर आतंक मचा हुआ था।
जवान खून और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा लिए वो और उसकी टीम अक्सर नक्सलियों से भिड़ते रहे। कार्यालयी प्रतिरोध बार बार बीच में रोड़ा बनता था और अक्सर सख्त कदम उठाने से रोका जाता था जवानों को।
छापामार और गोरिल्ला नीति से अपना काम करने वाले नक्सलियों से भिड़ना इतना आसान नहीं होता था। वो अक्सर जंगलों में छुपे रहते थे। और जवानों को जंगल के भीतर के रास्तों की जानकारी उनके बनिस्पत कम होती थी।
अक्सर इनकी टीमें चक्कर लगाने के लिए निकला करती थी पूरे इलाके में जो अपने आप मे ही खतरनाक होता था। अमन अफसर होने के बावजूद हर बार खुद जाने की कोशिश करता था ताकि उसके जवानों और सहकर्मियों को ऐसा न लगे कि उन्हें हर बार खतरे में डाल जाता है। अमन वैसे तो बहुत मिलनसार था और मात्रा 26 वर्ष का होने के नाते अपने कनिष्ठ अफसर और जवानों के साथ दोस्तों कक तरह बर्ताव करता था। इंस्पेक्टर राहुल ( काल्पनिक नाम), और सब इंस्पेक्टर आलम (काल्पनिक नाम) से उसकी बहुत घनिष्ठता थी। वो उन्हें अपना छोटा भाई मानता था। एक बार ऐसा हुआ कि अमन को किसी जरूरी काम से रुकना पड गया। तो राहुल अपने टीम के साथ राउंड पर निकल गया। लेकिन उन्हें खबर नहीं थी कि नक्सलियों ने अमन के लिए जाल बिछाया हुआ था। उन्होंने भूमिगत माइंस बीच रखे थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि उस टीम के 2 अफसर और 3 जवान मौके पर ही शहीद हो गए। अमन को सबकी मौत का बड़ा दुख था लेकिन राहुल की मौत उसे कचोट रही थी। उसे लग रहा था कि राहुल उसकी मौत मार गया। वो गुस्से में लाल हो गया ये खबर सुनकर। उसने सीधे उच्च अधिकारियों से बात की और त्वरित तौर पर जवाब देने के आदेश की गुजारिश की। लेकिन उच्च अधिकारियों ने ऐसा करने से मना कर दिया।
अमन अपना मन मारकर राह गया। वो बहुत उदास रहने लगा। सेना में शहीद जवानों की जगह दूसरे जवान आ गए। बात आई गयी हो गयी। रोजमर्रा की तरह चीजें सामान्य होने लगी। लेकिन अमन के मन से उस नुकसान की तकलीफ नहीं जा रही थी।
नक्सलियों से मुठभेड़ आम बात हो गयी थी। कभी 2 जवान शहीद होते तो कभी 4 नक्सली मारे जाते। जंगल के पास वाले गांवों का समर्थन होने के नाते नक्सलियों को बहुत सहूलियत होती थी। छुपकर हमला कर वो गांवों में छुप जाते जो सैन्य बलों की मुश्किल और बढ़ा देता था। एक बार गांव से एक आदमी खबर लेकर आया कि नक्सलियों के सरदार ने परसों एक मीटिंग बुलाई है। बहुत ही अच्छा मौका है नक्सलियों के सरदार को पकड़ने का। अमन को ज्यादा भरोसा नहीं था लेकिन बदले की चाह और जवान खून का जोश उसे उतावला कर रहा था। उसने घात लगाकर नक्सलियों को पकड़ने की योजना बनाई। और ये उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। वो खबरी खिड नक्सली था जो गांव वाले कि भेष में आया था। और नक्सली खुद घात लगाए बैठे थे सैन्य बलों के लिए।
अमन 6 अधिकारियों और लगभग 14 जवानों को लेकर निकल गया।
नतीजा तो पहले से तय था। नक्सलियों ने सभी जवानों को अमन के सामने मौत के घाट उतार दिया। इतनी सी उम्र में इतना खून खराबा देखकर अमन गहरे सदमे में चल गया। उसकी भूल की वजह से लगभग 20 और जवान शाहीद हो गए जिसमे उसका भाई से दोस्त आलम भी था। अमन ये सब देखकर बिल्कुल निष्क्रिय हो गया था। शायद इसी लिए नक्सलियों ने उसे बंधक बना रखा था। उसे याद भी नहीं था लेकिन शायद 3 दिन तक वो भूखा प्यासा वैसे ही बंधा रहा। वो बरबस अपने आप को दोष दे रहा था इस नरसंहार का। अब वो खुद को गुनाहगार मान रहा था और शायद जीने के इच्छा नहीं बची थी उसमें।
इसे भगवान का चमत्कार ही कह सकते हैं कि 3 दिन बेहोश रहने की वजह से नक्सलियों का ज्यादा ध्यान नहीं था उसपर। और उस गांव के मुखिया ने चुपके से अमन को आजाद करा दिया। अमन की मायूसी देख कर मुखिया ने अमन को समझाया और एहसास दिलाया कि उसने जो भी किया अपने देश और फर्ज के लिए किया। देश को ऐसे अफसर की जरूरत है। इसलिए वो उसकी गाड़ी लेकर फौरन यहां से निकल जाए।
तबतक हाई कमान को इस घटना खबर मिल गयी और उन्होंने अमन को उच्च अधिकारियों का आदेश नहीं मानने के आरोप में बर्खाश्त करना चाहा लेकिन पहली भूल होने की वजह से उसका तबादला वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में कर दिया गया।

नोट: ये सत्य घटना पर आधारित है। अमन मेरे बचपन का मित्र है। और इस घटना में मेरे आवास की कॉलोनी को हिला कर रख दिया। जिसके बाद कई परिवारों ने अपने बच्चों को सेना में जाने से रोक दिया। मेरी मंशा बिल्कुल नहीं कि सेना की अवहेलना करूँ। सेना के सदा ही दिल धड़कता रहेगा। लेकिन कुछ माँ अपने बेटे को शहीद होते हुए नहीं देखना चाहती। धन्य है वो माएँ जो अपने बेटों को इस देश पर मार मिटने देने के लिए हां बोल देती हैं।
जय हिंद।
© शैल