...

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उड़ान
गगनचुम्बी ईमारत में रहने वाला अक्सर ज़मीं की क़द्र नहीं करता ! भूल जाता है की नीँव ज़मीं पर ही होती है ! चारदीवारी के भीतर महंगे सामान और क़र्ज़ की चमक दमक में रिश्ते कहीं दबे होते है !
घर खून पसीना और बलिदान मांगता है परोक्ष और अपरोक्ष रूप से ! घर के लिए या घर में किये कार्य अहसान नहीं होते अपितु एक रचनात्मक सहयोग होता है ! किसी कमी का अहसास नहीं होता ! न तो कुछ छुपता है न छुपाया जाता है !
सोचते तो सब सुंदर ही है लेकिन मन की उडान घर से मकान हो जाती है जो गगनचुम्बी ईमारत सी नितांत तन्हा होती है ! कल्पना और ख़्वाब ऊँचे माले से जैसे ज़मीं पर आना चाहते है लेकिन धूल और बस धूल.
न क़र्ज़ काम आता है न विचार !
उड़ान ज़मीं से ही शुरू होती है लेकिन कहाँ तक ...पता नहीं ! बहुत कुछ छूट जाता है जो वापिस नहीं मिलता न घर न ज़मीं न ही गगनचुम्बी ईमारत की तन्हाई !
ताउम्र सोचा एक अदना सा घर
और नीँव का पत्थर न मिला
सोचा कभी फुर्सत ख़्वाबों से
और नींद ने किनारा कर लिया
© "the dust"