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ओ कान्हा, तुझसे नजरिया हटती ही नहीं...!!!
बृज की रेशमी गलियों में बसंत का मौसम था। हवाओं में खुशबू, बांसुरी की मधुर धुन और राधा के मन में कान्हा की छवि। वह सुबह से अपने आंगन में बैठी थी, हाथ में रंगीन चूड़ियाँ और आँखों में सपने। राधा का मन आज बहुत चंचल था, जैसे मन का मोर अपने कान्हा के प्रेम में झूम रहा हो।

कान्हा आज बंसी लेकर राधा के गाँव आये थे। वह हमेशा की तरह अपनी शरारतों में लगे हुए थे, कभी गोपियों की मटकी फोड़ते, कभी उन्हें छेड़ते। पर उनकी आँखें सिर्फ राधा...