पंडित जी के जीवन की बागडोर
वो कहते हैं ना की जोड़ियां ऊपर से ही बन कर आती है, हमारे और पंडित जी के जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक दूसरे से अनजान, दोनों अपने अपने कार्यशाला में व्यस्त, कैसे एक दिन एक अटूट बंधन में बंध गए, कुछ पता ही नहीं चला। इसे ईश्वर की लीला कहिए या विधी का विधान, पर हां एक बात मैं,यानि की पंडिताइन,आप सबसे साझा करना चाहती हूं कि पंडित जी, पंडिताइन से मिलने से पहले, बिल्कुल भी जीवन के प्रति सचेत और सीरियस नहीं थे। हमारा मतलब है कि देर से सोना रातों में, फिर सवेरे देर से उठना। सब कुछ उल्टा पुल्टा। ना खाने की चिंता और न ही सेहत को ले कर सजग। बाहर का तला हुआ भोजन खाना, और फिर कब्ज़ और बाकी की शिकायत। सासु मां बेचारी परेशान और फिर होती है पंडित जी की पंडिताइन से मुलाक़ात। पहले तो पंडिताइन भी चौंक गयी पंडित जी की इन हरकतों से, फिर धीरे धीरे पंडिताइन ने संभाली बागडोर पंडित जी के जीवन की। और तब से ले कर आए तक पंडित जी में काफी बदलाव आए हैं जैसे कि जल्दी उठना,घर का भोजन ग्रहण करना और शाम में जल्दी घर लौट आना। बस एक पत्नी को और क्या चाहिए कि पति उनकी सारी बातें माने और उनका और परिवार का ख़्याल रखे। अब तो बच्चे भी पंडित जी से प्रभावित होकर सवेरे जल्दी उठ जाया करते हैं। तो ऐसे हुई एक अल्हड़ पंडित जी की एक जिम्मेदार पति और पिता बनने तक का सफ़र ।
आशा करती हूं आप सभी को पसंद आए।
धन्यवाद 🙏
© Aphrodite
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