...

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बचपन मां के आंचल में
मां मेरा बचपन कितना प्यारा था
आंचल में तेरे संसार सारा था
छुप जाता था तेरे आंचल में
जब कोई सताता था
मां मेरा बचपन कितना प्यारा था

रातों को नींद न आए तो मीठी सी लोरी सुनाती थी
अपने गोद में मेरा सर रखकर सुलाती थी
सुबह सुबह अपने हाथों से नाश्ता खिलाती थी
सारा काम छोड़ कर मुझे स्कूल छोड़ने आती थी
मां मैं तेरा राजदुलारा था
मां मेरा बचपन कितना प्यारा था
आंचल में तेरे संसार सारा था

याद है मुझे तेरा हांथ थाम कर बाजार जाना
पसंद आए कोई खिलौना
तुम्हारे न खरीदने पर मेरा रूठ जाना
मेरे होटों पर मुस्कान देखने के लिए
खिलोने दिलाती थी
मां मुझे कितना प्यार जताती थी
मां मेरा बचपन भी कितना प्यारा था
आंचल में तेरे संसार सारा था।

मां वो बचपन के दिन बहुत याद आते है
जब मेरी आंखों में आसूं आए मुझे हसाने के लिए
आप अपने सारे गम भूल जाए कुछ ऐसा प्यार दिखाती थी
मार खाता था बेलन से तेरे
" उसी बेलन से बनी फिर रोटी खिलाती थी
मैं खुश रहु हमेशा इसलिए हर रोज मंदिर जाती थी..
मां मेरा बचपन कितना प्यारा था
आंचल में तेरे संसार सारा था।

देख मां आज तेरा लाल कितना बड़ा हो गया है
जिम्मेदारी के बाजार में अकेले कही खो गया है।
इस दिल में तेरे सिवा किसी और का प्यार नहीं होता था
मैं आप से और सारे जमाने से छुप कर किसी की याद में रोता था।
सुबह सुबह तेरे हाथो से खाना था
कोशिश मैं करता खाना बनाने की तो अपना हाथ जलाता था
अब देख मां अपना खाना खुद बनाता हूं।
तेरे हाथो ने खिलाया निवाला था
अब तो खुद से ही खाता हूं।
बहुत प्यार करता हूं मां मैं आपसे पर बोल नही पाता हूं।
मां अपने गोद में मुझे फिर से सुलाओ न
बचपन की वो प्यारी लोरी फिर से सुनाओ न
मां मेरा बचपन कितना प्यारा था
आंचल में तेरे संसार सारा था।

© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️
@Ashishsingh #Ashishsingh #mysteriouswriter