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~•(बाल दिवस पर हमने लगाई दुकान)•~
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*जिन बच्चों को दुकान लगानी है, वो अपना नाम प्रिंसिपल ऑफिस में दे देंगे*

स्कूल की असेंबली में ये उद्घोषणा सुन मैं बहुत खुश थी।

मम्मी इस साल हम भी दुकान लगाएंगे,

" किस चीज का लगाए" ?

" खाने का लगाए क्या"?

" नही, अभी बहुत छोटे हो तुम लोग, गेम का लगाओ"

"अच्छा ठीक है"

साल था 2015, हर बार की तरह इस साल भी बाल मेला लगने वाला था। पर इस बार पिछली बार की तरह अपने स्कूल में नही, दूसरे स्कूल में लगने वाला था।
बीना किसी हिचकिचाहट के, अत्यंत प्रसन्न होकर हम अपनी छोटी सी दुकान जो लगाने जा रहे थे।
अपने गुड्डा गुडिया के छोटे से खेल से कहीं आगे आ चुके थे।
( इसमे "हम" मैं और मेरा भाई थे)


जल्द ही सुनिश्चित कर, हमने स्कूल में अपना नाम दे दिया था।
और बाल दिवस के एक हफ्ते भर पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी। पढ़ाई लिखाई छोड़, बस डट गए क्या करेंगे कैसे करेंगे।

और हमारी उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर थी।
हमने एक दिन पहले गेम सुनिश्चित किया।
उपहार में क्या देंगे🤔 जीतने वालो को।

स्टिकर्स ले लेते हैं, बच्चों को वो काफी पसंद भी होता है।

"मम्मी, तुम कब आओगी?"

" घर का काम निपटा के , दोपहर के 12 बजे तक"

" अच्छा मम्मी पर जल्द ही आना"

सारी तैयारी हो चुकी थी, और हम सुबह 6 बजे के करीब घर से निकल चुके थे।

और अपने स्कूल पहुंचने के बाद , सभी के साथ दूसरे स्कूल चले गए थे।

हम लोगो को मेला के एक कोने में दुकान अपना समान जमाने के लिए मिल गया था।

हम खुश होकर, सोच रहे थे जब चीफ गेस्ट आएंगे तो उनको गेम कैसे...