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वृद्धाश्रम
बाबू जी, बाबू जी......लगभग चिल्लाते हुए, "क्यों मेरे परिवार में शांति नहीं रहने देते, मैं तंग आ गया हूँ आपकी रोज-रोज की नौटंकियों से"।
विमला सही ही कहती है, आपको वृद्धावस्था आश्रम में छोड़ आना ही ठीक होगा। तभी जी सकेंगे हम सब शांति से।
अपने इकलौते बेटे रमेश के कहे ये शब्द राम प्रसाद के कानों में पिघले शीशे के समान जाते हुए, उसके हृदय की भावनाओं को झुलसा रहे थे। जो अपनी पत्नी विमला की कहीं जाने किन-किन बातों को लेकर सुबह-सुबह ही अपने पिता पर बातों की बौछार लिए टूट पड़ा था।
इक़ ही पल में रामप्रसाद को अपने जीवन के वो पल याद आने लगे, कितने प्यार से उसने रमेश को पाला-पोसा , उसकी हर ज़िद को भरसक पूरा करने का सदा प्रयास किया।
मगर उसी बेटे ने बिना किसी को कुछ कहे जीवन का महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए, प्रेम-विवाह किया।
और पत्नी मोह में इतना लीन हुआ कि माता-पिता की अवस्था उनकी जरूरतों को पूरा करना दूर उनके स्वास्थ्य का भी कोई ध्यान नहीं दिया। राम प्रसाद ने इन्हीं सदमों के चलते अपनी पत्नी को पहले ही खो दिया था।
आज बेटे रमेश की बात उसके हृदय को बेध गयी, आज से पहले उसे कभी उसे उस पल की याद नहीं आयी थी, जब रामप्रसाद और उनकी पत्नी ने कोई संतान न होने पर अनाथालय से रमेश को गोद लिया था।
हां!भले ही रमेश उसका स्वयं का पुत्र नहीं था, परंतु कभी उन्होंने इस बात की कमी महसूस नहीं कि, और उसे अपने बेटे से कहीं अधिक प्यार से पाला था।
जिस पुत्र को अनाथाश्रम से लाकर बड़े प्रेम से अपने पुत्र से बढ़कर पाला आज वही उसके बुढ़ापे में सहारा न बनकर, उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आने की बात कर रहा था।
जीवन के सब कटु अनुभव पल एक एक क्षण आज राम प्रसाद की आंखों के सामने अपने "जीवन का चलचित्र" के समान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

जीवन का चल चित्र जिसमें कोई आवाज़ नहीं होती।
वो जीवन पर्यंत चलता रहता है। अक्सर जीवन में चुनौतियाँ आती है। जीवन में नयी सिख दे जाता है।

Usha patel