एक भोला लड़का
मयंक एक मध्यम परिवार में पैदा हुआ लड़का, जिसकी ख्वाहिश थी कि बड़ा होके सेना में अधिकारी बनना। अपने देश की रक्षा करने का जुनून तो मानो उसके जन्म के साथ ही पैदा हुआ था। अभी हाल में जब वह 18 वर्ष का हुआ तो सेना में भर्ती होने का जुनून तो सर ऊपर चढ़ने लगा। गांव से रिस्ता होने से शरीर तो हट्टा कट्टा मजबूत, चौड़ी छाती लम्बाई भी 6 फ़ीट के करीब थी, जब वह अपने बाबा या भाई से सेनिकों की शौर्य गाथाएं सुनता था तब उसका यौवन दुगुना विस्तार कर भुजायें फड़कने लगती थी। सेना में जाने के लिए सारा श्रेय उसके भाई और बाबा का ही रहा क्योंकि उसके भाई सेना में सैनिक थे और उसके बाबा पुलिस में अधिकारी। इन्हें लोगो से कई शौर्य गाथाएँ सुनके उसे भी ये ललक जागी थी। सेना में भर्ती परीक्षा भी होती थी तो उसके लिए शहर जाकर पढ़ने का निश्चय किया, माता-पिता से अनुमति लेकर मयंक अपने सपनों को जीतने चल दिया सोचा था कि वापस जब आयूँगा तो सेना की वर्दी पहनकर ही लौटूंगा। ज्यादातर गांव के बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं उन्हीं में से एक मयंक था लेकिन सेना में अधिकारी बनने का जुनून उसकी पढ़ाई से मजबूत था। एक कोचिंग संस्थान में प्रवेश लेने के बाद वह वहाँ मन लगाके पढ़ाई करने में लग गया। किराये कमरे पर रहना और भी कई प्रकार के खर्चे थे जिसे वह भली भाँति समझता था कि उसके परिवार ने कितना संघर्ष करके उसको शहर पढ़ने भेजा सो वह जी जान से पढ़ाई करता। किराये के कमरे से उसकी कोचिंग करीब 15 किमी दूर थी, सायकिल से आना जाना था क्योंकि रुपये इतने खर्च नहीं कर सकता था कि वह ऑटो या किसी सवारी वाहन से जाए।
फिर भी समय बीतता गया और मयंक अभी भी उसी लगन से पढ़ाई में लगा था मानो उसे अपने सपनों के सिवाय कुछ और भाता ही न हो।
शेष अगले में।
© Mr. Busy
फिर भी समय बीतता गया और मयंक अभी भी उसी लगन से पढ़ाई में लगा था मानो उसे अपने सपनों के सिवाय कुछ और भाता ही न हो।
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