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रिटायर्ड जिंदगी ❤
ट्रेन मैं बस में सामान रख बैठा ही था कि मेरे सामने वाली सीट में एक बुजुर्ग दंपति ने अपना सामान रखा |और यही कुछ 75 की उम्र के दिख रहे बड़े ही आदर्श परिधान पहने उन सज्जन ने मेरी सीट नंबर पूछ कर अपनी सीट की पुष्टि करना चाहा |
सीट नंबर की पुष्टि के बाद उन्होंने अपना सारा सामान बहुत ही शालीनता से व्यवस्थित रूप से रखकर अपनी सीट पर बैठ गए |
मेरी आंखें उनके उदासीन चेहरे ( जिस पर ना खुशी झलकती ना ही,दुख की लकीर ) उनको आपस में हिंदी में बात करता देख मैं समझ गया था कि यह केरल राज्य के तो नहीं हो सकते |मेरी कौतुहलता मुझे विवश किए जा रही थी |मैं उन्हें जानना चाहता था,समझना चाहता था, कि आखिरकार उम्र के इस पड़ाव में हमारी सोच की पृष्ठभूमि क्या-क्या बदलाव आ जाते होंगे?
मेरी बातचीत शुरू ही होने वाली थी, कि वेटर ने टोमेटो सूप -टोमेटो सूप की रट लगा कर मेरी बातचीत पर वही विराम लगा दिया |
क्योंकि उनका पहनावा उनके पढ़े लिखे सभ्य होने की को परिभाषित कर रहा था |इसलिए मैंने शालीनता से पूछा आर यू फ्रॉम केरला?
नहीं नहीं मैं और मेरी पत्नी केरल के एक प्रतिष्ठित मंदिर में मानी हुई मनौती के लिए आए थे उन सज्जन व्यक्ति ने उत्तर मे बताया |
बातचीत का सिलसिला जैसी से आगे बढ़ा तो ज्ञात हुआ कि यह प्रतिभाशाली व्यक्तित्व वाले यह सज्जन रेलवे के एक प्रतिष्ठित पद से
* रिटायर्ड * हैं |जी हां (रिटायर्ड )अब आप सोच रहे होंगे कि यहां पर रिटायर्ड सब इतना रेखांकित क्यों? मेरा मन एक रिटायर्ड व्यक्ति की जिंदगी को पढ़ने की कोशिस करने लगा |
कितना भिन्न है ना जीवन के उम्र का यह दौर जिसके बारे में हम शायद वर्तमान में कल्पना भी नहीं करना चाहते|| कुछ इसलिए कि हम ऐसा मानते हैं कि जीवन के जिस पड़ाव में अभी हम हैं जिसमें सपने हैं,उमंग है, उत्सुकता है,प्यार है वह हमेशा स्थिर रहेगा |
मैं यह देखकर हैरान था कि युवावस्था में हमारे दिन का न जाने कितना प्रतिशत समय अपने हमसफर के बारे में सोचने में,उससे बातचीत करने में गुजरता है |
और जिंदगी का एक यह दौर है जहां पर अजीब सी चुपी है,वाक्यों की कमी का आभास है | पूरे 48 घंटे के सफर में उन दंपति को आपस में बातचीत ना करते देख मै काफ़ी हैरान था | अब आप कहेंगे कि यह तो इनके बीच की नारजगी भी तो हो सकती है तो मै कहूंगा जी नहीं, उनका एक दूसरे का ख्याल रखना,साथ खाना, इस बात का साक्ष्य था कि यह इनके बीच बातचीत के अभाव की वजह नाराजगी नहीं बल्कि उम्र के इस दौर तक आते-आते शब्दों की कमियां थी | शायद अब ना ही महत्वकांक्षा को पूर्ण करने की चेष्टा थी, ना ही जिम्मेदारियों का बोझ |बल्कि जिंदगी स्वयं बोझ सी प्रतीत हो रही थी |
जिंदगी भी ना इस दौर पर आकर ठहर सी जाती है जैसे कोई पथिक एक लंबे सफर पर चलते चलते अब हताश हो गया हो |
उनकी प्रत्येक छोटे-छोटे कार्यो में निपुणता,सहजता साफ झलकती जो शायद उम्र के साथ आए तजुरबो का परिणाम थी |
उम्र के इस पड़ाव में आधुनिक युग का प्रभाव भी उन पर साफ साफ दिखाई दे रहा था हाथों में मोबाइल,उसमें कुछ देर उंगलियां दौड़ाते |फिर कुछ ही पल में रखकर खिड़की से बाहर की ओर देखते -देखते खो से जाते, मानो जिंदगी को अभी भी ना समझ पाए हो |
उनकी पत्नी भी इस कार्य में पीछे ना थी,नेटवर्क जाते ही व्याकुल हो जाती |
धीरे धीरे मुझे एहसास हो रहा था कि जीवन का यह पड़ाव जीवन द्वारा दिए गए परीक्षाफल के साथ गुजारना होता है और यह परीक्षाफल आपको जीवन भर दी गई परीक्षाओं का परिणाम होता है |जो आपको आत्मसंतुष्टि से बचा हुआ जीवन जीने में सहायता करता है ||❤

{जिंदगी रिटायर होने के बाद बस यादों की लाइब्रेरी- सी बन के रह जाती है,हर दिन यादों की एक नई किताब लेकर उसके पन्नों को पलट कर,यादों में खो जाना ही सुखद अनुभव है ❤

Written By● ADARSH