एक कैंसर पेशेंट की कहानी "शून्य की ओर"
कुछ वक़्त पहले तक ज़िन्दगी सम्भाले नहीं सम्भल रही थी । और आज एक ही सवाल ज़ेहन में घूम रहा है
" ज़िन्दगी तू इतनी छोटी क्यों है ? "
किसी बड़े से हॉस्पिटल की बेड पर पड़ी हुई मैं
और मेरे आसपास हरे कपडों वाले डॉक्टर्स
मेरी नज़र ऊपर उस पँखे पर टिकी हुई है ,
कुछ और देख नहीं पा रही हूँ ।
अब तो ये हॉस्पिटल ही अपना घर बन गया है ,
आख़िर लंबे वक़्त से यहीं तो लेटी हूँ ।
सब ठीक ही तो चल रहा था ...
फिर एक दिन डॉक्टरों को ये कहते सुना कि मेरे पास वक़्त बहुत कम है ।
जब फोन की बैटरी 15 % पर आ जाती है तब हम...
" ज़िन्दगी तू इतनी छोटी क्यों है ? "
किसी बड़े से हॉस्पिटल की बेड पर पड़ी हुई मैं
और मेरे आसपास हरे कपडों वाले डॉक्टर्स
मेरी नज़र ऊपर उस पँखे पर टिकी हुई है ,
कुछ और देख नहीं पा रही हूँ ।
अब तो ये हॉस्पिटल ही अपना घर बन गया है ,
आख़िर लंबे वक़्त से यहीं तो लेटी हूँ ।
सब ठीक ही तो चल रहा था ...
फिर एक दिन डॉक्टरों को ये कहते सुना कि मेरे पास वक़्त बहुत कम है ।
जब फोन की बैटरी 15 % पर आ जाती है तब हम...