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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।
मगर वास्तविकता यह है अनन्त व असंभव ही रहेगी क्योंकि इस गाथा में योनि व चूत काभी अपनी इच्छा व स्वार्थ को समाप्त करके सून्य नहीं होकर के अपशगुनी बनाती जिसमें वह प्रेम से शून्य ना होकर अपनी योनि व चूत के मल्यभोग क्रिया को शून्य नहीं कर पाती जिसके कारण वह असत्यता में एक अपशगुनी आधी सिद्ध के नाम से प्रचलन में आएगी जरूर मगर ना स्वयं सिद्ध हो पाएगी ना ही इस गाथा को सिद्ध कर पाएगी इसके चलते एक अपशगुनी आधी सिद्ध के नाम से प्रचलन में आएगी जरूर मगर ना स्वयं सिद्ध हो पाएगी ना ही इस गाथा को सिद्ध कर पाएगी इसके चलते एक नारित्व व स्त्रीत्व शून्य व शून्यनिका ज़रूर हो जाएंगे मगर अपने कालश्रोथ लिगश्रोथ जातिश्रोत विभकितश्रोत पूर्ण रूप से सामाप्न करने ध अनन्त व असंभव ही रह जाएंगी जिसके कारण वह एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त व असंभव का
समापन नहीं हो पाएगी।। क्योंकि यह गाथा अनन्त तक आहुतियां मांगती ही रहेगी जिसके कारण नारित्व व स्त्रीत्व तथा असतिव मिलकर काभी कोई स्तंभ स्थापित कर सिद्ध होकर स्मारक में परिवर्तित नहीं हो पाएंगे।।इसका कारण चक्र नियंत्रित होगा क्योंकि कालश्रोथ जातिश्रोत लिगश्रोथ विभकितश्रोत बिना सम्पन्न करे ही शून्य होकर एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त एक वैशया और एक अन्य की अधूरी दास्तान कहलाई जाएगी, मगर फिर यह गाथा अन्त व संभव होकर सिद्ध हो गई।।
#एक_असभंव_प्रेम_गाथा_अनन्त_सिद्ध_स्वागं_नाट्य