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नशे की रात ढल गयी-13
नशे की रात ढल गयी (13) ... कायस्थ जाति में नौकरी का महत्व क्या है, इसका पता मुझे नौकरी पाने के बाद हुआ।जैसे अचानक सिग्नल ग्रीन हो जाय तो बहुत देर तक रूकी ट्रेन के यात्रियों के चेहरे पर जो खुशी के भाव उठते हैं -कुछ वैसी ही मनोदशा में मैं भी था ।जब देश में जमीन्दारी प्रथा थी उस समय भी अधिकांश पटवारी (जमीन का लेखा-जोखा रखने वाले) कायस्थ ही होते थे ।नौकरी हमारा परंपरागत पेशा रहा है । लेकिन अब ऐसी बात नहीं है ,समय के साथ सबकुछ बदलता गया ।मगर समाज में इतना कुछ बदलाव होने के बाद भी हमारी मानसिकता में बदलाव नहीं आया । नौकरी आज भी हमारी पहली और अंतिम प्राथमिकता है ।इस नौकरी के मोहपाश में बंधकर हम अपनी जड़ों से उखड़ते चले गये..एक कहावत है कि गाँव में जिस घर की दीवार पर पीपल-बर उगा हुआ दिखाई पड़े तो समझना चाहिए कि किसी कायस्थ का घर है ..लिहाजा हमलोग भी गाँव से शहर में आकर बस गये ।उस समय मेरी उम्र बमुश्किल दस साल की रही होगी । ... नौकरी मिलते ही शादी के प्रस्ताव भी तेजी से आने लगे।हमारे समाज में सबसे पहले फोटो और टिपण मांगे जाते हैं । अगर फोटो पसंद नहीं आया या दहेज की लिस्ट पसंद नहीं आयी तो कह दिया जायेगा कि गणना (कुन्डली) ठीक से नहीं बैठ रही और यह कहकर फोटो -टिपण लौटा दिये जायेंगे । गणना कम से कम सोलह-अट्ठारह गुण से बैठनी चाहिए-यह स्कोर-कार्ड एक बेंचमार्क है और एक अंतिम अस्त्र भी (लड़केवालों के पास)..लड़कीपक्ष के किसी भी प्रस्ताव को खारिज करने के लिए । इस विटो का प्रयोग मेरे मामले में भी किया गया । मैं मन मसोस कर रह जाता जब देखता कि फोटो अच्छा है मगर स्कोर-कार्ड कम है । मामले की तह में जाने पर मालूम होता कि लेन-देन में कुछ कमी की वजह से ऐसा जानबुझकर किया गया । इस चक्कर में जब कई रूपवती कन्याँए मेरी जिन्दगी से एक के बाद एक निकलती चली गयीं तो मुझे लगा कि अब पानी सर से गुजर रहा है । पता नहीं यह मेरे अंदर की नाराजगी थी या हताशा एक दिन मैंने बाबूजी से साहस जुटाकर बेहद फिलासॅफियाना अंदाज में कह दिया--ये संसार नश्वर है ..मैं किसी सांसारिक पचड़े में नहीं पड़ना चाहता ..ये शादी -वादी मुझे नहीं करनी ।.. बाबूजी जी तो मेरे इस अप्रत्याशित आचरण से हतप्रभ से रह गये । इकलौती औलाद और वैराग्य ?! ..लेकिन इसके बाद रातों-रात पता नहीं कैसे सारे ग्रह-नक्षत्र एक दूसरे से मिल गये ..कुल बत्तीस गुणों से । वैसे ये बात अलग है कि शादी के बाद धीरे-धीरे फिर ये सारे ग्रह मेरे विपरीत (छत्तीस की दशा में) आ गये हैं ..
कायस्थों के बारे में कई कहावतें मशहूर हैं -उनमें से एक है कि सात लाला मिलकर एक मूली नहीं उखाड़ सके..पता नहीं यह कितना सच है ,लेकिन बचपन की एक घटना अबतक याद है..एकबार घर में एक साॅप का बच्चा निकला । वह कमरे के कोने में माँ को दिखाई पड़ा .. चिल्लाने पर बाबूजी भी आ गये .. पहले तो माँ को बोले मारने के लिए , फिर असहाय घर से बाहर निकल जोर-जोर से पुकारने लगे- कोई मर्द बा ऽऽकि ना .. साॅप.. साॅप निकलल बा ऽऽ !

( क्रमशः )