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पंडितजी
सन् 1980 में हमारे शहर में कुछ अलग सा वातावरण था। तेलंगाना, मराठा, कन्नड, मारवाड़ी हर भाषा के लोग यहाँ रहते थे। सभी अपनी भाषा के साथ-साथ दक्कनी हिंदी बोलते थे।
पडोस में एक ब्राह्मण परिवार था।बडा गरीब था। पिता पास के मंदिर में पूजा करते थे, जो दक्षिणा मिलती उससे घर चलता था। एक बेटा था जो ग्रेजुएट था पर बेरोजगार।
उस समय शुरूआत हुई थी रिजर्वेशन्स की। बी.सी,एससी,एसटी, इन सबको नौकरी मिल सकती थी। पर ब्राह्मण को नही मिल सकती थी। दो बेटियाँ थीं। एक
बच्चों को ट्यूशन पढातीं थीं तो एक पास ही मे
बल्ब के सीरियल बनाने जातीं।
हम बडी बहन के पास ट्यूशन पढने जाते थे। वे पढाती तो अच्छा थीं पर मारती बहुत थीं।हम पट मारते और घर में खेलते रहते। इस पर माताजी उन्हें पैसे काट कर देतीं। हमको यह समझ न आता था। ।
पंडितजी हर रोज गली के किराणा की दुकान पर जाते थे। तब मैं उन्हे नमस्ते मामाजी कहतीं। वे मुस्कुराकर जवाब देते। किराणा वाले बनिया अंकल हर रोज पंडितजी को 250ग्राम चावल, 50ग्राम तुवर की दाल, 50ग्राम तेल, और छोटी-छोटी पूडियों मे नमक, मिर्च आदि मसाले देकर अपनी दुकान की शुरूवात करते। अगर किसी दिन मैं नमस्ते न करूँ तो वे आवाज लगाते कोडलाऽऽ(भानजी)।आज नमस्कार किया नही? मुझे दक्षिणा नही मिलेगी। तू अगर आवाज न दे तो। करके मुझे बुलाकर निकल जाते।
एक दिन गली में बहुत चहल-पहल थी। माताजी-पिताजी दोनों पंडितजी के घर जाकर
आए। फिर स्नान करने लगे। कुछ देर के बाद
दोनो भोजन करने बैठे। फिर माताजी कहने लगीं। बडे सीधे थे पंडितजी, बेटी को ऐसा नही करना चाहिये था।
पिताजी ने माताजी की बात को काटते हुए कहा अच्छा किया उसने, क्या पंडितजी की
हैसियत थी बेटियों की शादी करने की? क्या हुआ अगर उसने छोटे कुल में शादी कर ली।
पंडितजी को ऐसा नही करना चाहिये था। आत्महत्या करने की आवश्यकता क्या थी?
कुछ देर बाद घर के सामने से कुछ लोग पंडितजी को लेकर जा रहे थे राम-राम का जाप करते हुए। मैं भी रोने लग गई। तभी कुछ औरतें बात कर रही थीं।
आजकल ब्राह्मणों का जीना दुश्वार हो गया है।
अब धर्म की कट्टरता नही चलेगी। छोटी ने अगर भाग कर छोटे कुल में शादी कर ली तो
क्या हुआ था? बडी की तो कर सकते थे। उसे अब कौन देखेगा? पंडितजी ने सही नही किया
आत्महत्या करके और आगे निकल गईं।