नन्दिनी तेरी कहानी
आज के आपाधापी और व्यस्तता के दौर में सबसे कीमती चीज़ है
वक़्त
जिसकी जरूरत इंसान को तोड़ भी देती है
तो चलिए कहानी की शुरआत करते हैं
दोस्तो कहानी शुरू करने से पहले आपको एक बात बता दूं
लोग मुझे अकसर कहते है कि आप शादीशुदा नहीं है फिर भी स्त्री के जीवन को इतनी सुंदर तरीक़े से करूणारूपी शब्दों में कैसे परिभाषित कर लेते हैं
तो दोस्तों इसमें मेरे अविवाहित होने से
यह तय नहीं होता कि स्त्री को समझने के लिए विवाह का होना आवश्यक है
स्त्री के प्रति सम्मान और ममता का नज़रिया रखेंगे तो आप स्त्री को सहजता से समझ सकते हैं।
तो आइए कहानी की शुरुआत करते हैं
आज फिर स्कूल की घंटी बजी ।
नंदनी रोज की तरह बालों में दो चोटी बनाकर स्कूल के लिए सहेलियों के साथ निकली
ठंड का मौसम है धूप बड़ी सुहावनी लग रही है
दौर 1999 का है जब मोबाइल और social media का चलन नहीं था
खेल भी खो खो और कब्बड्डी ही होती थी जो शारीरिक और मानसिक योग्यता का प्रदर्शन बड़ी सुगमतापूर्वक करते थे
गांव का परिवेश था तो लहजे में लाज और शर्म का विशेष मिश्रण होता था
सरकारी स्कूलों में शिक्षा अनिवार्य थी
उस वक़्त शिक्षक लड़कियों और लड़कों में छड़ी का भरपूर उपयोग करते थे
दंड देने में कोई आरक्षण नहीं था
और माता पिता भी इसका समर्थन करते थे
नंदिनी जब स्कूल से घर वापस जाती तो
माँ के पास जाकर बैठ जाती
फिर मां उसे खाना खिलाती अपने हाथों से
नन्दिनी भी खाना खाकर अपने आँगन में खेलती रहती
फिर शाम होते ही माँ के साथ पूजा करती
फिर पढ़ाई करने बैठ जाती
रात्रिभोज करने के बाद 7बजे सो...
वक़्त
जिसकी जरूरत इंसान को तोड़ भी देती है
तो चलिए कहानी की शुरआत करते हैं
दोस्तो कहानी शुरू करने से पहले आपको एक बात बता दूं
लोग मुझे अकसर कहते है कि आप शादीशुदा नहीं है फिर भी स्त्री के जीवन को इतनी सुंदर तरीक़े से करूणारूपी शब्दों में कैसे परिभाषित कर लेते हैं
तो दोस्तों इसमें मेरे अविवाहित होने से
यह तय नहीं होता कि स्त्री को समझने के लिए विवाह का होना आवश्यक है
स्त्री के प्रति सम्मान और ममता का नज़रिया रखेंगे तो आप स्त्री को सहजता से समझ सकते हैं।
तो आइए कहानी की शुरुआत करते हैं
आज फिर स्कूल की घंटी बजी ।
नंदनी रोज की तरह बालों में दो चोटी बनाकर स्कूल के लिए सहेलियों के साथ निकली
ठंड का मौसम है धूप बड़ी सुहावनी लग रही है
दौर 1999 का है जब मोबाइल और social media का चलन नहीं था
खेल भी खो खो और कब्बड्डी ही होती थी जो शारीरिक और मानसिक योग्यता का प्रदर्शन बड़ी सुगमतापूर्वक करते थे
गांव का परिवेश था तो लहजे में लाज और शर्म का विशेष मिश्रण होता था
सरकारी स्कूलों में शिक्षा अनिवार्य थी
उस वक़्त शिक्षक लड़कियों और लड़कों में छड़ी का भरपूर उपयोग करते थे
दंड देने में कोई आरक्षण नहीं था
और माता पिता भी इसका समर्थन करते थे
नंदिनी जब स्कूल से घर वापस जाती तो
माँ के पास जाकर बैठ जाती
फिर मां उसे खाना खिलाती अपने हाथों से
नन्दिनी भी खाना खाकर अपने आँगन में खेलती रहती
फिर शाम होते ही माँ के साथ पूजा करती
फिर पढ़ाई करने बैठ जाती
रात्रिभोज करने के बाद 7बजे सो...