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लोकतंत्र का जयघोष...
नमस्ते मेरे पाठक मित्रों! जैसा की आप सभी जानते हैं की आज (26 जनवरी 2023)74 वा
गणतंत्र दिवस है। भारत ने 15 अगस्त 1947 (India Independence Day) को ब्रिटिश शासन से आजादी पाई थी. हालांकि, देश का शासन पहले 3 सालों तक 1935 के औपनिवेशिक भारत सरकार अधिनियम (Government of Colonial India Act) के हिसाब से चलता रहा था. इसके बाद भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने तैयार कर लिया था. भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था. 26 जनवरी की तारीख इसलिए चुनी गई थी क्योंकि 1930 में इसी तारीख के दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया था.तो आज मेरा ये लेख आप सभी के लिए । मेरी भारत मां के लिए।
आज पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से गणतंत्र दिवस समारोह मनाया जाएगा। सभी के दिल में अपने देश के प्रति प्यार, सद्भावना,और गर्व महसूस होता है।
आज भारत के सभी स्कूलों में शिक्षक और विद्यार्थी मिल कर झंडा फहरायेंगे। सुबह 7 बजे ही सब उपस्थित हो कर... प्रभात फेरी निकालते हैं पूरा शहर गूंज उठता है उनके जोश भरे नारो से। कोई नारा दे रहा होता है तो कोई आपस में बाते करते मौज करता है। जब शिक्षक की नजर पड़ती तो फिर जोश में आ नारे देने लगता है। फिर स्कूल लौट के "कवायत" की अलग ही बात होती कोई सीधा कोई टेढ़ा मेढा कतार में खड़ा रहता है।
ध्वज फहराने हर बार स्कूल ने बुलाए मेहमान ही आते हैं। हार बार वे ही झंडा फहराते हैं। मुझे इसमें हमेशा एक बात खटकती रही की हर बार उन नेताओं को ही ये मौका क्यों मिले? आप बुरा मत मानिएगा परंतु नेताओं से बड़ा या महान इस देश में कोई नहीं? झंडे को सलामी देना ये तो हर भारतीय का हक है। फिर हर बार ये सुनहरा मौका उन्हे ही क्यों ? इस देश में कितने समाजसेवक हैं, जो रोते हुए के आंसू पोछता है,कोई किसी बेसहारे को सहारा देता है। कितने कलाकार हैं, जो अपनी कला से पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध किए हुए हैं और सबके चेहरे पे खुशी लाई है।हमारे समाज में कई ऐसे महानुभाव है जिन्होंने अपनी आमदनी को भी उन्होंने अपना न समझकर सबको जीने का सहारा दिया। कुछ बच्चो की पढ़ाई का खर्चा वे ही उठाते हैं । कोई अनाथ हो तो नाथ उनके बनते हैं । इस देश में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी तिजोरियां भरने से ज्यादा भूखों का पेट भरने में भरोसा रखते हैं और इतनी दुर्दैव की बात है की हमे उनका नाम तक नहीं पता। लेकिन सभी अमोरजादो और नेताओ के नाम याद हैं। हमारे देश के पुत्रों का लहू सरहद पे यूं ही बह जाता है। उसका परिवार इंतजार करते रह जाता है। एक मां को छोड़ वो बेटा अपनी भारत मां की हिफाजत करता है। जिस पत्नी का जीवनभर साथ निभाने का वादा किया था उसका साथ छोड़ जाता है। बहन को जो हर बार कहता था की रक्षाबंधन पर जरूर आऊंगा, आज उसकी कलाई सुनी पड़ी है। पिता को दिया विश्वास की वो जरूर लौटेगा विजयी हो कर। वो वीरमरण को प्राप्त हुआ। भाई का हाथ पकड़ उसे बात सीखने का निभाने का वादा कर सरहद पे प्राण छोड़ गया। उस महान हस्ती के परिवार को पहचानने वालाभी कोई नहीं जो हर भारतवासी को अपना मानता था। वाह! क्या लोकतंत्र है! हमारा देश बस नेता और विधायकों में अटका पड़ा है जिन्हे हमारी नही अपनी भरी हुई तिजोरी की फिक्र है। अगर आप उनके लंबे भाषणों से प्रभावित होते हैं और उनके हर बात को गुलामों की तरह मानते हैं तो वे आपको अपने बंधन में बांधे रखे हैं। मैं सभी को बुरा नही कह रही लेकिन कुछ अच्छे और बुरे पलड़े को दिखा रही हूं।
दोस्तों लोकतंत्र का विजय तब होगा जब हम अनेकता में एकता का ध्वजवंदन करेंगे।
जब मैं हिंदू, में मुस्लिम, मैं सिख,मैं ईसाई का ,परिवर्तन। " मैं भारतीय" में होगा तब गणतंत्र विजय होगा। जब मैं हिंदी,मैं मराठी, मैं गुजराती, मैं आसामी, मैं पंजाबी, मैं बंगाली, का कथन "मैं भारतीय" में परिवर्तित होगा । तब गणतंत्र का जयघोष होगा। समाज में प्रांतवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद के नाम पे दंगा खत्म हो जाएगा उस दिन गणतंत्र का जयघोष होगा।
जिस दिन इस देश में अपने ही अपनो से लड़ना छोड़ देंगे, भूखे भूख से बिलखना छोड़ देंगे उन्हे अपना पेट पालने के लिए यू जब रोना न पड़ेगा। हर भारतवासी जब दूसरो के आंसूओ को अपना समझ कर रोएगा। उसके जख्मों को भरेगा। किसी रोते हुए बच्चे को अपना बच्चा मान उसे खुशियां देगा। तब मेरा देश वाकई "अनेकता में एकता" का प्रतीक कहलायेगा।
इस समाज मे जब बेटा बेटी का भेद खत्म हो जाएगा। स्त्री भ्रूण हत्या का नामोनिशान मिट जायेगा। हार एक नागरिक को अपना सामान हक मिलेगा। देश का हर बच्चा जब स्कूल की चौखट चढ़ेगा हाथ में कलम ले वो पूरी दुनिया को पढ़ेगा। तभी तो इंडिया आगे बढ़ेगा।
जब समाज के दरिंदो को सजा हमारा समाज दिलायेगा। जिस बच्ची की गिरेबान में झांका उसने ,उसे मौत से भी बुरी सजा सुनाएगा। तभी तो मेरा देश महान कहलायेगा। इन दरिंदो ने 3 महीने की बच्ची से लेकर 60 साल की स्त्री तक को नही छोड़ा। फिर भी हमारे समाज ने उस दरिंदे को न पकड़ा। बलात्कार, रेप मानो सामान्य हो इनके लिए। कुछ लोग बस तमाशा देखते रह गए। आज हमारे घरों में भी कभी कभी बच्चियां महफूज नहीं। मैंने तो कई किस्से सुने जिसमे अपनो ने ही इज्जत की धज्जियां उड़ाई। फिर समाज ने स्त्रियों को ही जिम्मेदार ठहराया और आप कहते हो ये लोकतंत्र है? वाह!!! नन्ही सी जान को जन्म लिए ही कचरे के डिब्बे में फेक दो क्या यही लोकतंत्र है?

भ्रष्टाचार की क्या ही कहे, गरीब झुलसा जा रहा है अमीरों की बगिया में। मेहनत की कोई कीमत नहीं। भावनाओं की अब कोई जगह नही। भूल चुका है भारतवर्ष की सोने की चिड़िया का बसेरा तो हमने ही उजाड़ा है। हमने भ्रष्टाचार का बीज जो बोया है। आज कल हर कोई आरक्षण के नाम पर लड़ता मर जाता है। क्या ये मेरा देश भारत महान हो रहा है? बाते मेरी बुरी लगती हैं तो लगे।
गरीब के घर खाने को एक रोटी नहीं, अमीर छप्पन भोग के मजे उठा रहा है। रोटी की कीमत उसे क्या पता अब वो तो गरीबों को और कंगाल बना रहा है। और आप कहते हैं लोकतंत्र मजबूत हो रहा है?
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई,
अब ये पंक्तियां बस किताबो मे कैद रह गई।
शहीदों की कुर्बानियां याद रखो मेरे देशवासियों। अपना फर्ज निभाना भी सिख जाओगे।
जब मेरा देश इन सभी विपत्तियों से बाहर आ जायेगा तब गणतंत्र की वास्तव में विजय होगी।
( मेरी कोई भी बात से अगर आपके दिल को ठेस पहुंची हो तो कृपया मुझे क्षमा करे।)
©Vanshika Chaubey
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