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कामवासना 1
मैं आपके सामने हाजिर हूं एक कामवासना से भरी अपनी एक कहानी को लेकर आशा करता हूं कि आपको यह बहुत पसंद आएगी लेकिन इसी के साथ में एक बात और कहना चाहूंगा की यह कहानी 18 वर्ष से ऊपर के ही लोग पढ़ें क्योंकि इसमें काफी सारे शब्द सहवास और दो लोगों के समागम का वर्णन भली-भांति किया गया है यह एक चेतावनी है अगर आपको कहानी अच्छी लगे या ना लगे लेकिन अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा तो आइए शुरू करते हैं कहानी को

मेरा नाम वीर है बात कुछ दिनों पहले की है मुझे एक कंपनी में नौकरी मिली और मुझे अपने गांव से दूर गुड़गांव में जाना पड़ा! तो मेरे पिताजी ने मुझे रोकने की भरपूर कोशिश की अगर यह समझाने की कोशिश की की वहीं पर रुक कर कोई दूसरी नौकरी देखी जाए पर मैं यह नौकरी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था आखिरकार उन्होंने मेरी जिद को मान लिया लेकिन समस्या यह थी कि मेरे रहने खाने का कोई प्रबंध नहीं हो पा रहा था

इसी बीच मेरे पिताजी को है याद आया की उनके एक अंकल अपनी पोती के साथ गुडगांव में ही रहते हैं उनके बेटे और बहू का एक कार दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया था उनकी पोती भी किसी कंपनी में काम करती थी उसने अभी अभी काम करा शुरू किया था उसका नाम स्वाति  था


तो मेरे पिताजी ने उन अंकल को फोन करके बताया की  वीर का चयन एक कंपनी में हो गया है और वह कंपनी गुड़गांव में है तो अगर आप मदद करें वह कुछ दिन आपके यहां रह लेगा

उन्होंने सीधा मेरे पिताजी को डांटते हुए बोला अब तुम यह बोलोगे तुम्हारा अपना घर है और वीर मेरा बेटा समान है मैं जब तक चाहे रुक सकता है तो इस तरह मेरे जाने का रास्ता साफ हो गया.

इस तरह से 5 दिन बीत गए और फाइनली आज मैं गुडगांव जा रहा हूं मेरे पिताजी ने पहले ही उनको फोन कर दिया उन अंकल का नाम रामप्रकाश था और उनकी पोती का नाम स्वाति था दोनों के फोन नंबर मेरे पिताजी ने मुझे दे दिया


2 घंटे के सफर के बाद मैं गुडगांव रेलवे स्टेशन पर उतरा मेरे हाथ में तीन बैग थे उसके बाद मैंने अंकल को फोन किया कि मुझे एड्रेस बता दें मैं गुडगांव रेलवे स्टेशन पर पहुंच चुका हूं

उन्होंने बड़ी विनम्र आवाज में मुझे अपना एड्रेस बताया जो कि मैंने फोन पर नोट कर लिया पर मैंने एक ऑटो रिक्शा किया और चल दिया बताए हुए एड्रेस पर

मैं बताई हुई कॉलोनी में तो पहुंच गया लेकिन घर ढूंढने में बड़ी मशक्कत हुई कभी इस गली में ऑटो लेकर गया कभी उस गली में ऑटो लेकर गया फिर राम प्रकाश अंकल को दोबारा फोन किया कि मैं आपकी कॉलोनी में तो पहुंच गया हूं लेकिन मुझे घर नहीं मिल पा रहा है फिर उन्होंने मुझे बताया कि किसी से भी पूछ लो की भूत वाली गली कौन सी है

यह सुनकर तो मेरे मन में अजीब अजीब से सवाल आने लगे कि क्या एड्रेस है क्या सच में वहां भूत रहते हैं चलो चलते हैं अंकल से पूछ लेते हैं

फिर मैंने किसी से एड्रेस पूछा और उसने मुझे बताया कि भैया अगले ही गली में आप चले जाओ वही भूत वाली गलि

भूत वाली गली में प्रवेश करते ही मैंने ऑटो वाले को उसको भाड़ा दे दिया और पैदल ही आगे चलने लगा बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई थी कोई भी मकान तीन मंजिल 4 मंजिल से कम नहीं था मैं हर मकान की नेमप्लेट देखता हुआ जा रहा था

और अंत में सबसे आखिर का मकान जो देखने में बहुत छोटा लग रहा था एक फ्लोर बना हुआ था उस पर जो नेम प्लेट थी राम प्रकाश के नाम से थी अब मेरे जान में जान आई कि चलो मकान तो मिल गया है अब मैंने अपने बैग उस बंद गेट के सामने रख दिए और घंटी को ढूंढने लगा लेकिन क्या बात है गुडगांव में रहने के बाद भी घंटी नहीं लगा रखी है मकान में

बार-बार अंकल को फोन करना बड़ा अटपटा लग रहा था पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोचेंगे कि जॉब करने आ गया है लेकिन इसको यह नहीं पता इसको वह नहीं पता मैं किसी को भी अपने कारण तंग नहीं करना चाहता था

अब मैंने दरवाजे पर ही अपने हाथ से दो तीन बार पीटा और और कुंडी को जोर-जोर से कट कट करने लगा अब दरवाजे के सामने जो गैलरी थी उसके सामने ही एक कमरा बना हुआ था उस कमरे का गेट खुलने की आवाज आई

मैं धूप में खड़े रहकर  पसीने में तरबतर हो रहा था और धीरे से गेट खुला तो सबसे पहले अंकल की पोती स्वाति ने गेट खोल दिया ऐसा मुझे लग रहा था यह स्वाति ही होगी और कौन होगा

लेकिन उसके मुख मंडल का भाव तो कुछ और ही कह रहा था उसने प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी तरफ देखा और पूछा क्या चाहिए

मैंने उसको एक कातिल सी मुस्कान दी और दिल के अंदर ही अंदर सोचा कि पहले ही दिन  मैं कैसे बता दूं कि मुझे क्या क्या चाहिए
स्वाति मुझे खड़ा खड़ा  देख कर मुस्कुरा रही थी अरे जनाब कहां खो गए बताओ तो क्या चाहिए आपको

सिर्फ एक ही कमरा खाली है और कमरे का किराया ₹7000 है स्वाति लगातार बोलते ही जा रही थी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी

मैंने उसकी बात को बीच में ही काटते हुए बताया मेरा नाम वीर है और मैं राम प्रकाश अंकल के दोस्त का लड़का हूं इतना सुनते ही उसका मुंह लाल हो गया और उसने नजरें नीचे झुका ली

उसने कहा माफ कीजिएगा मुझे लगा कि कोई किराए के लिए घर देख रहा है हां दादा जी ने आपके बारे में बताया था कि आप आ रहे हैं आ जाइए अंदर
इतना कहकर उसने दरवाजा पूरा खोल दिया मैंने अपने बैग अपने हाथ में उठाया और उसके पीछे पीछे अंदर चल पड़ा उसने एक प्रिंटेड लोअर पहना हुआ था और उसके ऊपर थोड़े से गहरे रंग की टीचर डाली थी टी-शर्ट थोड़ी छोटी थी उसकी  कमर का निचला हिस्सा मुझे साफ साफ नजर आ रहा था इतना देखकर ही मेरे लिंग में मुझे तनाव सा महसूस हुआ मेरी टाइट पेंट के अंदर से ही मेरे लिंग का आभास हो सकता था इसीलिए मैंने अपना एक हाथ अपने पेंट के जेब में रख लिया ताकि किसी को यह ना पता चले कि मेरा लिंग खड़ा हुआ है


अब मैं उसके पीछे पीछे चल रहा था अब मेरी नजर उसके मदमस्त कटीले नितंबों पर पड़ी उसकी चाल से उसके नितंब ऊपर नीचे हो रहे थे मैं अपने आप पर काबू नहीं पा रहा था


मेरे लिंग का तनाव बढ़ता ही जा रहा था मेरे लिंग में जैसे सिसकियां सी आ गई हो अपने आप उसने ऊपर नहीं चलना शुरू कर दिया था


लिंग का आकार बढ़ने के कारण लिंग के मुख से त्वचा थोड़ी सी पीछे आ चुकी थी  इस परिस्थिति में मेरे लिंग पर बनी हुई छोटी-छोटी नशे  भी फुल कर मोटे हो चुकी थी


अगर आपने कभी ध्यान दिया हो अगर कोई युवक कसरत करता है तो उसकी नशे कैसे उभर कर मोटे हो जाती हैं वैसे ही हालत अब मेरे लिंग की हो चुकी थी


मुझे ऐसा लग रहा था कि स्वाति अभी  नहा कर निकली हो उसके बालों की खुशबू जैसे मौसम ऐ बहार बनकर मेरे चेहरे पर हवा के झोंके हल्के हल्के आ रहे थे जो कि मेरी मदहोशी को और बढ़ा रहे थे


मेरा लिंग इस कदर तन गया था अब मैंने अपने हाथ से जो कि मेरी जेब में था उससे मेरे लिंग को सही दिशा में सेट करने का प्रयास करने लगा मैं नहीं चाहता था कि पहले ही दिन किसी को भी इस तरह का नजारा देखने को मिले


घर की रूपरेखा कुछ इस तरह से बनी हुई थी कि मैन गेट खुलते ही एक हाथ में एक कमरा बना हुआ था और उसके साथ में एक चौड़ी गैलरी छोड़ी हुई थी


और चौड़ी गैलरी के सामने दूसरा दरवाजा बना हुआ था जैसे ही स्वाति ने दूसरा दरवाजा खोला तो उसमें छोटा सा ड्राइंग रूम था और एक हाथ की तरफ बाथरूम बना हुआ था और दूसरी तरफ टॉयलेट था ड्राइंग रूम में सोफे के सामने मेज पर मैंने अपने दोनों बैग रख दिया और मैं सोफे पर बैठ गया सोफे के सामने ही टीवी था और उसके साइड में फ्रीज लगा हुआ था


स्वाति ने अपना एक हाथ फ्रिज के ऊपर रखा वह थोड़ा सा झुकते हुए फ्रिज के अंदर से रखी हुई बोतल को बाहर निकाला लेकिन वह मेरी तरफ नहीं देख रही थी आप पहले ही दिन था तो मैं भी ज्यादा बात नहीं कर सकता था मन तो मेरा बहुत कर रहा था

स्वाति ने एक पानी की बोतल ली लेकिन मैं उसको झुकते हुए बराबर देख रहा था ऐसा लग रहा था जैसे खुदा ने बड़ी फुर्सत से उसको बनाया हो उसका एक एक अंग बड़ा तराशा हुआ सा लग रहा था उसका लोवर जोकि प्रिंटेड था उसके 1 लाइन उसके दोनों नितंबों से बीच से होते हुए अंदर जा रही थी


उसके लोअर का इलास्टिक के ऊपर फूल का निशान बना हुआ था जोकि और उसको कामुक बना रहा था उसके बाल जो खुले हुए थे उसके कंधों से होते हुए उसके आधे चेहरे को छुपा रहे थे


उसकी टीशर्ट से उसके ब्रा के  स्ट्रैप थोड़े-थोड़े दिखाई दे रहे थे मेरी नजरें उसकी ब्रा के हुक के ऊपर थी



मेरी तंद्रा तब टूटी जब उसकी पायल की आवाज छनछन करते हुए मेरी तरफ आई और उसने मेरी आंखों में देखते हुए पानी की बोतल मुझे दी


हम दोनों एक दूसरे को कामुख भरी निगाहों में देख रहे थे फिर मुझे अचानक से ही एहसास हुआ कि कहीं मैं गलत तो नहीं हूं यह एक पढ़ी-लिखी लड़की है कहीं इसका बातचीत करने का यही तरीका हो यही सोच कर मैंने अपने आप को थोड़ा सा रोकने की कोशिश की

जब स्वाति पानी की बोतल मुझे देने लगी तो अचानक से मेरी उंगलियां उसकी उंगलियों से टकरा गई आज तक कभी ऐसी ऊर्जा का संचार नहीं हुआ मेरा लिंग जो अभी थोड़ा सा नॉर्मल हुआ था फिर से अकड़ कर अपने पुराने अवस्था में वापस आ गया मुझे लगता है आज हस्तमैथुन करना ही पड़ेगा
मैंने अपने आप को काबू रखते हुए पानी की बोतल को पकड़ लिया और मैं स्वाति की आंखों में देखने लगा जैसे ही मैं उसकी आंखों में देखने लगा उसने अपनी पलकें नीचे झुका ली अब मेरी नजर उसकी नाभि पर पड़ी या यह कहूं कि नाभि से थोड़ा नीचे पड़ी क्योंकि नाभि से नीचे का हिस्सा मुझे साफ साफ नजर आ रहा था उसके लोवर के इलास्टिक टी-शर्ट के दरमियान  एक तिल था


अब मेरी नजर वही जम गई थी मैं बार-बार उस  तिलको निहार रहा था लेकिन जैसे ही मैंने थोड़ा सा ऊपर की तरफ देखा तो वह भी मुझे लगा कर देखी जा रही थी फिर मैंने चुप्पी को तोड़ते हुए पूछा अंकल जी कहां पर हैं


तो उसने बताया दादा जी ने अभी दवाई ली है उनकी तबीयत कुछ सही नहीं है अभी कुछ देर पहले ही सोए हैं बात करते-करते वह मेरे साथ वाले सोफे पर आकर बैठ गई फिर उसने बताया कि वह अकेली ही नौकरी करती है और उसके अकेली सैलरी पर ही घर चलता है सारा पैसा घर पर और दादा जी की दवाइयों में लग जाता है इसलिए हमने सोचा था कि आगे वाला कमरा हम किराए पर देते हैं


हम दोनों एक दूसरे की आंखों में देख कर बात कर रहे थे लेकिन वह सोफे के दूसरे किनारे पर बैठी हुई थी मैं उसको ना चाहते हुए भी छूना चाहता था मैं अपनी धड़कनों को करार देना चाहता था मैंने पानी पीकर बोतल को उसकी तरफ बढ़ाया और आग्रह किया आप भी पानी पी लो गर्मी बहुत है और उसने बोतल का ढक्कन खोल कर बोतल को अपने मुंह से लगा लिया आपका नीचे वाला होठ बोतल की गर्दन पर ऐसा चिपक गया और वो धीरे-धीरे पानी पी रही थी पानी वह पी रही थी प्यास मेरी बढ़ती जा रही थी

उसने अपने होठों पर थोड़े से गहरे रंग की लिपस्टिक लगाई थी उसके थोड़े से निशान  बोतल पर भी आ गए मैंने कहा एक घूंट मुझे भी पीना है उसने बोतल को मेरी तरफ कर दिया और इस बार मैंने भी बोतल को मुंह से लगा लिया और अपने होठ वही  जगह रखें जहां उसने रखे थे मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वाति को चुंबन दे रहा था


लेकिन वह थोड़ी दूर बैठी हुई थी मेरे दिमाग में एक तरीका आया और मैं झटपट से खड़ा हो गया और अपने बैग कि चैन खोल दी और उसमें से एक छोटा तोलिया बाहर निकाल लिया लेकिन इसी पूरे घटनाक्रम में मेरा दोनों हाथ बाहर थे तो मेरे लिंग जो  तन कर कड़क हो गया था स्वाति की नजर मेरी पेंट पर थी और मैं आपको देख रहा था मैंने अपना तोलिया अपने हाथ में लिया और थोड़ा सा अपने चेहरे को पोछने का नाटक करने लगा

और अब जब बैठने की बारी आई तो इस बार में थोड़ा सा स्वाति के करीब बैठ गया और दूसरी तरफ अपने बैग को रख लिया अब हम दोनों फिर से बातों में लग गए बात करते करते हैं मैंने सोफे पर अपनी उंगली धीरे से स्वाति की तरफ सरकाई लेकिन जब कि मेरी नजर सामने टीवी पर थी और हम बात कर रहे थे मेरी सबसे छोटी उंगली फिर से मैंने थोड़ी से आगे खिसका दी

ऐसा करते करते मैं लगभग उसका हाथ जो कि सोफे पर रखा हुआ था अब मेरी छोटी उंगली को छू रही थी जैसे मेरी छोटी उंगली मैं उसकी हथेली के ऊपर वाले भाग को छुआ तो वहां पर छोटे-छोटे जो रोऐ बने हुए थे बिल्कुल खड़े हो गए लेकिन वह भी टीवी की तरफ ही देख रही थी और हमारे बातें बिल्कुल जारी थी


उसने अपना हाथ पीछे नहीं हटाया बस मेरे लिए इतना ही काफी था आगे बढ़ने के लिए अब मेरी छोटी उंगली थोड़ी सी और आगे बढ़ी और उसकी छोटी उंगली से जा मिली


लेकिन इस बार उसने अपना हाथ तो पीछे नहीं किया लेकिन उसके हाथ की पकड़ सोफे पर काफी बढ़ गई लेकिन मजाल है कि उसने मेरी तरफ देखा हो वह लगा था टीवी की तरफ देखे जा रही थी

हम दोनों की उंगलियां एक दूसरे से खेल रही थी हम दोनों को ही इस खेल में काफी मजा आ रहा था समय कैसे बीत रहा था मैं पता ही नहीं चल रहा था मुझे आए हुए 2 घंटे बीत चुके हैं


अब मेरी छोटी उंगली  उसकी छोटी उंगली के नाखून को हल्का सा ऊपर की तरफ मोड़ने की कोशिश करने लगी इसका तत्कालीन प्रभाव उसके चेहरे पर देखने को मिला उसकी सांसे थोड़ी सी तेज हो गई थी उसने अपने नीचे वाले होठ को हल्का सा अपने दांत से काट दिया


इस बार मैंने थोड़ा सा हौसला करके अपना पूरा हाथ उसके हाथ पर रख दिया उसकी उंगलियों के बीच में अपनी उंगलियों को फंसा दिया और अपनी अंगुलियों को हल्का हल्का ऊपर नीचे करने लगा जबकि मेरी हथेली उसकी कलाई के थोड़ी सी नीचे घर्षण कर रही थी

उसके हाथों का एहसास पाकर मेरी मदहोशी पल पल बढ़ती ही जा रही थी मैं ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहा था कि उसने मेरे रहने का इंतजाम इस जन्नत में करवाया हम दोनों ही सामने की दीवार पर लगे हुए टीवी की ओर देख रहे थे और मेरी उंगलियां कभी उसके नाखूनों से खेलती तो कभी उसके अंगूठी को हल्का सा हिलाने की कोशिश करती बड़ा मीठा मीठा सा एहसास था मैंने महसूस किया कि स्वाति ने अपनी उंगलियों से सोफे की पकड़ को थोड़ा सा  बड़ा दिया है और उसने अपना एक पैर दूसरे पैर के ऊपर रख लिया


मैं बिना देर किए उसको चुंबन देना चाह रहा था लेकिन इसी के साथ दरवाजे की आवाज हल्की हल्की सी हुई जैसे दरवाजा खुलने वाला हो उसने मेरी तरफ देखा और एक दम से वीर दादा जी आने वाले हैं


इसी के साथ दादाजी बाहर आ गए और स्वाति वहां से उठकर किचन में चली गई आपको जानकारी के लिए बता दूं कि किचन पर कोई दरवाजा नहीं लगा हुआ था तो मैंने दादा जी के पैर छुए और उनसे बातें करने लगा जहां पहले स्वाति बैठी हुई थी वहीं पर आकर दादाजी बैठ गए मैं दादाजी की ओर देख कर बात कर रहा था तो मैंने देखा मेरे सामने ही किचन के अंदर स्वाति चाय बना रही थी हम दोनों की ही नजरें बार-बार टकरा रही थी जैसे ही नजर मिलती या तो वह पलके झुका लेती यह इधर-उधर देखने का नाटक करती


थोड़ी ही देर में स्वाति चाय ले आई और जैसे ही वह मुझे चाय देने के लिए झुकने लगी उसके कुछ बाल लहराते हुए उसके चेहरे के सामने आ गए और मैंने झटके से देखा दादाजी कहीं और देख रहे थे मैंने मौके का फायदा उठाया और एक हल्की सी फुक उसके चेहरे पर मारी और एक जोर की सांस ली

उसने फिर मेरी तरफ देखा और मुझे चाय का कप थमा दिया चाय का कप पकड़ते हुए उसने अपनी नजरें पूरी तरह से झुका ली थी और वह वापस किचन में चली गई और लग गई कुछ काम करने

इसी बीच मैंने चाय के कप में अपनी उंगली डालते हुए जैसे चाय की मलाई को साइड में करते हैं थोड़ा सा नाटक सा किया और अब वह  उंगली मैंने अपने दोनों होठों के बीच में रखी स्वाति की तरफ देख कर कहने लगा चाय सच में बहुत अच्छी बनी है वह भी मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी और अपनी पलकें नीचे कर ली लेकिन थोड़ी देर में वह फिर से पलटी इस बार उसने अपनी एक उंगली दोनों होंठों के बीच में रखी हुई थी और अपनी पलकें नजर मिलते ही  नीचे झुका ली यह एक तरह से उड़ते हुए चुंबन का जवाब था आज के आशिक क्या जाने कि यह एहसास क्या  एहसास था


मुझे इस पूरे घटनाक्रम में बड़ा आनंद आ रहा था और मैं लगातार दादा जी से बातें किए जा रहा था कब शाम हो गई पता ही नहीं चला

स्वाति अभी किचन में हमारे सामने ही बैठ गई अब उसके सामने आटा लगाने का बर्तन जिसे परात कहा जाता है उसमें आटा लगाने लगे उसके चेहरे पर एक साइड से बाल थोड़ा सा नीचे आ रहे थे जिसे वह अपने उंगलियों से कान के पीछे छोड़ कर आ रही थी लेकिन बाल इतने बदमाश थे कि कुछ अंतराल के बाद फिर उसके चेहरे पर आ रहे थे

मेरी नजर उसके दोनों पैरों पर पड़ी इतने गोरे पैर मैंने आज तक किसी के नहीं देखे थे गांव में खेतों में काम करने के कारण सब की एड़ियां फटी हुई है वही काले पीले पैर होते थे

वह आटा भी कितने प्यार से लगा रही थी जैसा उसके  उसके साथ खेल रही हो जैसे ही वह थोड़े से आगे की तरफ झुकती उसके सीने के उभार थोड़े से हिलते और उसके जांगे और थोड़ी सी नशीली बन जाती


और बीच-बीच में हमारी नजर एक दूसरे से मिल रही थी यह तो तय था कि हमारा समागम होना निश्चित है लेकिन कब होगा यह मैं कुछ कह नहीं सकता इतने में दादा जी ने मुझे बाहर का कमरा दिखाया तो जैसे ही वह मुझे कमरा दिखा रहे थे उन्होंने पंखे का खटके को दबाया लेकिन पंखा तो चला ही नहीं अब दादाजी के लिए एक और नई समस्या खड़ी हो गई


उन्होंने कहा वीर इतनी गर्मी में या तो बहुत बड़ी समस्या बन गई है तो मैंने कहा दादा जी कोई ऐसी बात नहीं है हम तो गांव में भी बिना बिजली के रहने वाले लोग हैं पंखा कल ठीक करा लेते हैं आज मैं नहा कर सो जाता हूं नींद आ जाएगी वैसे भी थका हुआ हुआ हूं

यह कहकर मैंने अपना बैग रख दिया और अपने कपड़े निकालने लगा और वहां पर एक चार पाई थी उसके ऊपर अपने बैग से निकालकर सारे कपड़े उसके ऊपर रख दिए

जैसे ही मैंने सारे कपड़े चारपाई पर निकाल दिए अब एक-एक करके मैंने पास में ही बनी दीवार के अंदर अलमारी में रखने शुरू कर दिया और अपने अंडर वियर और तोलिए को को बाहर बने हुए बाथरूम में टांग कर आ गया.

और अब मैंने नहाने की तैयारी शुरू कर दी क्योंकि सुबह से कितना इधर भागा उधर भागा कितनी बार पसीनो में भीग चुका था बाथरूम के अंदर जाकर जैसे ही दरवाजे की चिटकनी  लगाई बाथरूम के दरवाजे के पीछे एक बैग था जिज्ञासा बस मैंने उस बैग को खोल लिया और जैसे ही मेरी नजर कुछ अंडरवियर पर पड़ी जो की स्वाति की ही होंगी और उन अंडरवियर के नीचे कुछ क्रीम थी और एक रेजर था


मैंने अपने सारे कपड़े खोल दिए और शावर की तरफ मुंह करके खड़ा हो गया पानी की एक-एक बूंद मेरे चेहरे पर आ रही थी इस तरह से पानी में खेलना मुझे बहुत भा रहा था


और अचानक से मेरे मन में स्वाति का ख्याल आ गया कि वह भी यही साबुन लगाती होगी और बस इतना सोचते ही मेरे तन बदन में आग लग गई सबसे पहले मैंने उस साबुन को अपने होठों के किनारों पर हल्का सा छुणे  लगा

और साबुन लगाते लगाते अपनी छाती पर अपने हाथ से मल रहा था और देखते ही देखते मेरी छाती पर इतने झाग जमा हो गए मुझे ऐसे लगने लगा जैसे वह झाग नहीं है स्वाति का सीना है जो मेरे सीने से चिपका हुआ है मैं हर छोटे-छोटे बुलबुले को अपनी उंगलियों से मसल रहा था और देखते ही देखते मेरे लिंग का तनाव बढ़ने लगा

अब मैंने अपनी अंडरवियर को नीचे कर दीया और खेलने लगा अपने मदमस्त लिंग के साथ


फिर मेरे मन में विचार आया मैंने झटपट से वह बैग खोला जिसमें रेजर पड़ा हुआ था बस मजा इस बात का था कि स्वाति भी इसी रेजर से अपने बाल बनाती है


मैंने अपने तने हुए लिंग का मुख अपने उल्टे हाथ की उंगलियों से पकड़ा और सीधे हाथ मे रेजर पकड़कर अपने बाल बनाने लगा

मेरे मन में बार-बार स्वाति का चेहरा ही आ रहा था

देखते ही देखते लगभग सारे बाल साफ हो गए और लिंग पर उभरी हुई नसे और ज्यादा मोटी हो गई और साफ साफ दिखाई देने लगी


लिंग जैसे हुकार मारने लगा और बार-बार मेरे लिंग का मुंह मेरी जांघों से सीधा मेरे नाभि की ओर अंगड़ाइयां ले रहा था
जैसे मुझे कह रहा हो हे मालिक आपका बहुत-बहुत धन्यवाद लगता है शहर में आकर भी आप हमारा ध्यान रखोगे

काफी देर हो गई थी नहाते नहाते . मैं नहा कर अपने आप को तोलिए से पानी की एक-एक बूंद को साफ कर रहा था पानी की कुछ बूंदे मेरी   सिक्स एबस पर भी चमक रही थी अब पानी की बूंदे लिंग के कुछ ऊपर थी मैंने अपने लिंग को बिल्कुल जड़ के पास से पकड़ा और थोड़ा सा हिला दिया उस पर से सारी पानी की बूंदे नीचे गिर गई

इस तरह से मेरा स्नान पूरा हो गया लेकिन अभी अभी मैंने बाल साफ किए थे तो मुझे हल्की सी जलन का एहसास हो रहा था तो मैंने अभी अंडर वियर ना पहनने का फैसला किया और सिर्फ लोवर और टीशर्ट पहनकर बाहर आ गया

अब जैसे ही मैं चल रहा था मेरे लिंग का आवरण मेरे लोवर  में से साफ हो रहा था

मैं झुक कर अपने लिंग को देख रहा था कि कहीं ज्यादा तो नहीं दिख रहा या किस तरह से चला जाए या बैठा जाए जिससे अजीब ना लगे इतनी ही देर में मैं क्या देखता हूं मेरे सामने स्वाति खड़ी थी और उसकी भी नजर मेरे लिंग पर ही थी जैसे मैंने उसके चेहरे पर देखा उसमें अपनी पलके झुका ली और सीधा शर्मा कर बाथरूम के अंदर घुस गई

मैं अपने कमरे के गेट के पास ही खड़ा हो गया मैं चाहता था कि इस बार जब स्वाति बाहर आए तो दो पल अच्छे से दीदार हो ही जाए

काफी देर हो गई लेकिन वह बाहर नहीं निकली मैं भी अपने मोबाइल में लगा रहा लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मोबाइल में सर मारता रहा और वह अचानक से दरवाजा खोलकर मेरे सामने से होकर अंदर चली गई


मुझे थोड़ा सा अजीब लग रहा था मुझे लगा कि दादाजी भी अगर मुझे इस हालत में देखेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा चलो कुछ देर के लिए अंडरवियर पहन लेते हैं और मैं दोबारा बाथरूम में आ गया

मैंने अपना लोहार निकाल दिया और मैं अपना अंडरवियर तो वहीं पर छोड़ कर गया था उसको देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा

जैसा कि आप जानते हो मेरे दोनों अंडरवियर वही हैंगर पर लटके थे एक गीला था जो नहाते वक्त हो गया था लेकिन जो दूसरा सूखा था असली खुशी का राज है उसी में था

मेरा वह अंडरवियर बीच में से थोड़ा थोड़ा सा गिला था मैंने उसको अपने हाथ में से पकड़ा और अपनी नाक के पास ले आया इसमें तो किसी के काम रस की खुशबू आ रही थी और वह काम रस किसी और का नहीं स्वाति का ही है अगर मेरा अंदाजा सही है तो

मुझे लगता है वह जब अंदर आई तो उसने मेरा अंडरवियर जरूर अपनी योनि पर रगड़ा है योनि की गंध पहचानने में मैं कभी भी गलती नहीं कर सकता
मैं बाथरूम में खड़ा ही था और अपने अंडर वियर पर स्वाति के काम रस की खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी मैं आंखें बंद कर कर उसे चुंबन देने लगा था काफी देर हो गई थी अब रात्रि बहुत की तैयारी हो गई थी मैं बाहर आ गया

और अंदर ड्राइंग रूम में चला गया वहां दादा जी पहले ही बैठे हुए थे मैं उनसे बातें करने लगा वह पूछ रहे थे कि मैंने कौन सी कंपनी में ज्वाइन किया है किस तरह का काम मुझे करना होगा हम दोनों आपस में खूब बातें कर रहे थे

इतनी देर में स्वाति खाना लेकर आ गई हम दोनों के लिए मेरी नजर उसके चेहरे पर पड़ी एक पल के लिए मैं आपको देखता रहा जैसे लग रहा था कि वह प्यार की मूरत हो उसकी  भोहै ऐसे लग रहे थे जैसे झील के दो किनारे मिल रहे हो और उसके माथे के बीच में एक काला तिल था जो एक बिंदी का काम कर रहा था वह मुझे देख कर थोड़ी सी मुस्कुरा दि


उसके खुले हुए बाल  उसके मन के मतवाले पन का उल्लेख कर रहे थे जैसे-जैसे उसका चेहरा हिलता उसकी कान की बालियां धीरे-धीरे उसके गालों को स्पर्श कर रही थी

खाना सच में बहुत अच्छा बना था मैं रसोई में खड़ी होकर हम दोनों को देख रही थी और बीच-बीच में खाना ला रही थी

मैं अपना खाना लगभग खत्म कर चुका था इसी बीच रसोईघर से आवाज आई धड़ाम

मेरे और दादाजी की नजर एकदम से रसोई घर पर पड़ी स्वाति के हाथ में कांच का गिलास था जिसमें पानी भरा हुआ था जो हम दोनों के लिए  ले कर आ रही थी  उसके हाथ से गिर गए दोनों गिलास टूट गए


और  जल्दी जल्दी उसको साफ करने लगे एकदम से भागकर एक कपड़ा उठाकर लेकर आई ओसारे पानी को उससे साफ कर दिया लेकिन कांच का टुकड़ा उसकी उंगली मैं गढ़ गया

उसके मुख से जो एक जोर की सिसकारी निकली और जैसे ही दादाजी ने देखा दादाजी ने थोड़े से गुस्से में कहा यह लड़की कोई भी काम ढंग से नहीं  कर सकती हमेशा जल्दबाजी में रहती है ध्यान कहां रहता है तुम्हारा स्वाति

स्वाति ने किसी भी तरह का कोई भी जवाब नहीं दिया मैं अपना भोजन खत्म कर चुका था मैं सोफे पर से उठा और रसोई घर में आ गया

और दादा जी को एक गिलास पानी भर कर दे दिया मैंने स्वाति की तरफ इशारा किया हाथ दिखाओ जरा

उसने अपनी आंखों को बड़ा करते हुए प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी तरफ देखा जैसे पूछ रही हो जनाब हाथ क्यों चाहिए उसके चेहरे पर शिकन का भाव साफ नजर आ रहा था
. मैंने आव देखा ना ताव देखा मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और कांच का टुकड़ा अभी भी उसकी उंगली के सबसे आगे वाले भाग  में अभी भी लगा हुआ है

मैंने दादा जी को बताया कि कांच का टुकड़ा अभी भी लगा हुआ है मेरे बैग में फर्स्ट एड का कुछ सामान रखा हुआ है मैं उसको निकाल देता हूं ज्यादा बड़ा नहीं है मैं उसको वहीं पर छोड़ कर अपने कमरे की तरफ जल्दी-जल्दी चलते हुए आ गया


और अपने बैग में से फर्स्ट ऐड की किट निकाल कर जैसे ही पलटा स्वाति मेरे पीछे खड़ी थी मैंने उसको चारपाई पर बैठने का आग्रह किया और वह बैठ गई और मैं नीचे जमीन पर


उसका एक हाथ मेरे हाथ में था और मैं एक चिमटी की मदद से वह कांच का टुकड़ा निकाल रहा था और जैसे ही चिमटी से मैंने व कांच का टुकड़ा पकड़ा उसको थोड़ा दर्द हुआ और उसको उसने अपना दूसरा हाथ मेरे कंधे पर रखकर अपनी उंगलियों से जोर का दबा दिया

मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहने लगा स्वाति बस 1 मिनट लगेगा उसके बाद दर्द नहीं होगा

उसने अपना  सिर हां कहने के लिए हल्का सा  हिलाया

और मैंने वह कांच का टुकड़ा उसकी उंगली से बाहर निकाल दिया उसकी सांसों की भीनी भीनी खुशबू मेरे चेहरे पर आ रही थी उसके लबों पर जो लिपस्टिक लगा हुआ था अब उसमें कुछ रेखाएं बनी हुई थी जैसे समंदर किनारे रेत की लाइन बन जाती है अब मैंने झटके से उसकी उंगली को हल्के से दबा दिया ताकि थोड़ा सा खराब खून वहां से निकल जाए

उसने अपने दोनों आंखें बंद कर ली और गालों को बड़ा करते हुए अपने दांत के बीच में अपने जीभ से दबा दिया और  उसके नाखून मेरे कंधे में लगभग मेरी त्वचा में लगभग अपना निशान छोड़ने में कामयाब रहे

अब उसकी उंगली को मैंने अपने मुंह में ले लिया और देखने लगा उसकी आंखों में एक पल  जाने के बाद उसने अपनी आंखें खोली.



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