...

6 views

मर्द की पीड़ा
बड़ी अजीब से होती है एक मर्द की पीड़ा
सेहता सब कुछ है रोता भी पर किसी से
कहता नही है वो अपनी पीड़ा बस अंदर ही
अंदर उसके दबाए हर सुबह एक चालावे की
पीछे छिपी मुस्कान से चल देता है ।
जनता है की गर दिखाई थोड़ी सी भी कमज़ोरी
उसने ये समाज ही उसका मजाक उड़ाएगा सामने
सा कहेगा प्यारे बांट अपना गम पर जन उसको
उसका मजाक उड़ाएगा ।
अपनो से बिछड़ने का दुखड़ा सुना नही सकता
किसको , अपनी कमजोरियां बता नहीं सकता किसको लिए जिम्मेदारियां लिए पल पल घुट घुट
के मरता है पर कोई पूछे तो हल्की से बेमानी
हसी के साथ सब ठीक है कह के टाल देता
मर्द की पीड़ा बड़ी अजीब है समाज उसको
समझने का ढोंग जरूर करता है पर कहो गर उसको अपनाने को नए नए स्वांग रचता है
वंचित है ना जाने कितने अधिकारों से फिर भी
समाज उसीे को दबाने नए नए कानून गढ़ता है
मर्द की पीड़ा को भला कोई पीड़ा भी समझता है

© sac_lostsoul