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यात्रा
ब्रह्म, प्रकृति और जीव की यात्रा।

ये कहानी उन तीन पात्र की है जिसने शून्य से अनंत और अनंत से शून्य की यात्रा की।

एक समय की बात है आनंद नाम का पुरुष था, उसके पास कोई कमी नही थी। उसे जो चाहिए क्षण भर में ही उसके सामने आ जाती थी वो चाहे जो भी हो। भोग विलास से लेकर पद, प्रतिष्ठा सभी से वो संतुष्ट था। ज्ञान में भी वो सबसे ऊँचे स्तर पर था। एक और अलग क्षमता उसके पास थी वो योग व प्रयोग के द्वारा अपनी उम्र की समय सीमा में वृद्धि कर लिया था, उसके शरीर का क्षय होना बंद हो गया था। एक तरह से समझे तो वो उस समय के लिए अमर हो गया।

अब जिसके पास उम्र सीमा का अंत ना हो, जिसके पास सारे संसाधन उप्लब्ध हों और ज्ञान का भंडार भी हो तो ऐसे में जिज्ञासा और प्रयोग होना आम बात है।

वैसे भी कहा गया है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।

तो एक बार उसके मन में एक वास्तविक प्रयोग करने की जिज्ञासा पैदा हुई और आनंद ने उस जिज्ञासा को तत्काल प्रयोग में लाने का विचार किया।

क्योंकि ना उसके पास धन की कमी थी और ना ही काम करने वाले श्रमिकों की।

आखिरकार आनंद के मन में वो कौन सी जिज्ञासा थी जिसे प्रयोग में लाने के लिए वो इतना उत्सुक था??

इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने के लिए हमें आनंद की तैयारी को बारीकी से देखना व समझना होगा।

उसके पास धन, संपत्ति, तकनीक और सक्षम श्रमिकों की कमी नही थी इसलिए उसने सबसे पहले बहुत सारा बड़ा - छोटा द्वीप खरीदा जहाँ उसने पृथ्वी की सारी प्राकृतिक प्रजातिओं को वहाँ स्थापित किया केवल मनुष्य को छोड़कर।
क्योंकि वो अलग अलग मनुष्य जोड़ों को वो अपने प्रयोगशाला में उनका केवल शरीरिक वृद्धि कर रहा था।

16 वर्ष बाद उस द्वीप पर उस मनुष्य जोड़ों को आनंद ने अपनी देख - रेख में प्रकृति के सभी प्रजातिओं और संसाधनों के बीच छोड़ दिया और अब वो केवल उन सभी जीवों के साथ उस मनुष्य जोड़े का भी निरीक्षण करने लगा।

प्रश्न शायद साफ हुआ या नही किंतु आनंद की जिज्ञासा इन जोड़ों से इतना ही है कि क्या कभी ये हमें ढूँढने का प्रयास करेंगें?? क्या कभी ये हमें ढूंढ पायेंगें??

उनमें से एक जोड़े का नाम मानव और मानवी था।

उस द्वीप पर मानव और मानवी की नींद खुलती है वो पहली बार इस जगत का अनुभव करते हैं। दोनो आश्चर्यचकित हो गए कुछ समझ ही नही आ रहा था।

कुछ समय बिताने के बाद मानव और मानवी ने एक दूसरे को देखा और क्योंकि मानव और मानवी का पेट भरा हुआ था तो एक दूसरे को देखकर दोनो एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए और उन दोनो को मैथुन करने की इच्छा हुई और इच्छा तुरंत कार्यशील हो गयी। दोनो एक दूसरे के साथ जी भर कर मैथुन किये और आनंद की चरमसीमा पर पहुँचने के बाद उन्हे नींद का आभाष हुआ और दोनो सो गए।

#आनंद ने पाया सबसे पहले मनुष्य में काम उत्पन्न हुई।

कुछ आवाज सुनकर दोनो की नींद खुली और उसने पाया उसके पास कुछ जंगली जानवर थे पर उन्हे ये आभास नही था कि वो हमारे साथ क्या करेंगें इसलिए वो सब कुछ देखकर बड़ा आश्चर्य महसूस कर रहे थे। जानवर और मानव मानवी दोनो एक दूसरे के निकट आने लगे तभी अचानक जानवर ने उसपे हमला कर दिया और चोट पहुंचा दिया और दोनो वहाँ से भाग खड़े हुए और अचानक उनके अंदर भय पैदा हो गया अब वो सुरक्षा ढुंढ़ने लगे।

और तभी उनको कुछ जानवर पेड़ पर नज़र आये, कुछ जानवर खाते हुए तो कुछ नदी में पानी पीते हुए नज़र आये। ये सब देखना उनके लिए पहली बार थी इसलिए उनको बहुत आश्चर्य का अनुभव हो रहा था साथ में भय का आभाष भी हो रहा था।

इस तरह समय निकला और शाम से रात हो गयी दोनो के भय और आश्चर्य की कोई सीमा ही नही थी।
अचानक उसे भूख की अनुभूति हुई और उसे समझ ही नही आ रहा था कि क्या करें??

रात में भय, आश्चर्य और भूख के मारे उनको नींद ही नही आई।

दोनो नग्न थे, दोनो का शरीर कृष्काय हो गया था, भूख अलग लगी थी, भय और आश्चर्य की कोई सीमा ही नही थी। हर समय नई - नई अनुभवों का आभास हो रहा था।

इस तरह समय बीतने लगा और वो जानवरों से सीखकर शिकार करके भी खाना सीख गए।

अब उनके लिए पहली आवश्यकता पेट की भूख को मिटाना और दूसरी एक दूसरे की सुरक्षा थी।

समय बीतता गया और दोनो ने बहुत कुछ प्रकृति से सीखी कुछ उसको उनकी आवश्यकताओं ने उन्हें सिखा दी।

#आनंद ने पाया भूख और भय का साथ होने पर काम नही जागा जबकि नग्न दोनो साथ रहते थे। किंतु जब दोनो का पेट भरा हुआ हो, भय नज़र ना आ रहा हो तभी उन्हे मैथुन करने की आवश्यकता महसूस हुई।

इस तरह समय बितने के साथ उनमें बहुत सारी बदलाव देखने को मिले।

ऐसा अनुभव लगभग सभी द्वीपों पर हो रहा था कहीं कम कहीं ज्यादा।

दोनो ने अपना पहले संतान का अनुभव किया।
इस तरह कई संतानो का जन्म हुआ।
समय बीता अब मनुष्य ने पहली बार मृत्यु का अनुभव किया। उन्होंने देखा कोई सोया और उठा ही नही, उसे जगाने का अथक प्रयास किया फिर भी नही उठा तब उन्हें लगा शायद अब ये नही उठेगा, शायद अब ये नही रहा।

धीरे - धीरे विकास होने लगे और उन्होंने भाषा की खोज की और चीजें आसान हो गयीं।
फिर उन्होंने खेती सीखी और एक जगह रहना शुरू कर दिया।

पहली बार जरूरत से ज्यादा भोजन मिल जाने के कारण संग्रह करने की जरूरत सामने आई तो लोगों ने पात्र का अविष्कार किया।

संग्रह करने की प्रविर्ति आने से ही चोरी की भावना विकसित हुई, लोभ, इर्ष्या आदि की भावना पैदा हुई।

पहली बार उन्होंने लिपि की खोज की और तब धीरे धीरे नियम, कानून, राज्य, कारखाना आदि व्यवस्थाएं बनाये गए।

अब सभी मनुष्य को काम करने की जरूरत नही रह गयी कुछ लोगों को कार्य से मुक्त किया गया और उन्हे सोचने, समझने, कल्पना करने का समय मिला।

किसी ने व्याकरण की खोज की तो किसी ने योग विद्या की खोज की। इस तरह अनुभव के आधार पर नयी नयी चीजों की खोज होने लगी।

कुछ लोगों को कल्पना का अनुभव हुआ वो अब ऐसी चीजें देखने लगे जो साधारण मनुष्य नही देख पाते थे तभी उनके अंदर नये नये विचार पैदा होने लगे और वो अपनी कल्पनाओं मे प्रत्यक्ष ज्ञान के पड़े चीजों का भी अनुभव के आधार पर उनके रहस्य को सामने लाने लगे।

और तब कुछ ऐसा हुआ जो आश्चर्यजनक था पहली बार मनुष्य के अंदर जिज्ञासा हुई कि क्या यही एक दुनिया है या इस दुनिया के पड़े भी कुछ है??

जैसे अगर मिट्टी का घड़ा है तो इससे घड़ा बनाने वाले कुम्हार का अनुमान होता है।
अगर कहीं धुँआ है तो वहाँ आग होने का अनुमान होता है।

तो ये दुनिया है तो इसको बनाने वाला भी होगा!!!

कल्पनाओं में इन सभी चीजों पर काम चल रहा था कि अचानक एक मनुष्य को समाधि लग गयी और उसने कुछ ऐसा अनुभव किया जिससे आनंद भी आनंदित हो गये क्योंकि वो मनुष्य अब आनंद का दर्शन प्रत्यक्ष रूप से कर रहा था।

#इस तरह आनंद ने पाया मनुष्य अपना विकास समय समय पर करता गया और ज्यादातर लोग प्रकृति के साथ मिलकर अपना जीवन बिताने लगे और कुछ जिनके अंदर रहस्य जानने की जिज्ञासा हुई वो अब इस दुनिया बनाने वाले को ढूँढने में लग गए और वो ऐसी तकनीक अपने आप में विकसित की... कि उन्हे उन रहस्य का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ जिसे जान पाना साधारण मनुष्य के लिए असंभव है।

निष्कर्ष के रूप में आनंद ने यही कहा कि जीव यानी मनुष्य तब तक ब्रह्म का दर्शन नही कर सकता जब तक प्रकृति यानी माया में लिप्त हो। जिस समय उसे प्रकृति यानी माया से पड़े होगा उसे ब्रह्म का दर्शन हो जायेगा।

जीव का प्रकृति पर विजय प्राप्त करना ही उसे ब्रह्म की ओर अग्रसर करता है।

यात्रा कठिन है किंतु असंभव नही।

इस तरह आनंद ने शून्य से अनंत और अनंत से शून्य की यात्रा का अनुभव किया।

अब मैं ये पाठकों पर छोड़ देता हूँ कि उन्होंने कहानी के पात्र आनंद से क्या सिख ली??
क्या आनंद की जिज्ञासा अपने लिए थी या उन जीवों के लिए जो प्रकृति की गोद में सोकर अपना उम्र समाप्त कर लेते हैं??

टाइटल चित्र से आपको किसका बोध होता है??

समाप्त।



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