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मांझा और रिश्ते
बसंत पंचमी !

वैसे तो ये त्योहार दुनिया के लिए साधारण है , पर फर्रूखाबाद के लिए नहीं।
उसकी वजह ये नही है की उस दिन वेलेंटाइन डे है,
ये हमारे बसंत पंचमी के आगे कुछ भी नही।
हमारे शहर में इस त्यौहार को पतंगों और मांझे (रील) का त्यौहार कहते हैं ।
जहां पूरे दिन पतंग बाजी और रात को दिवाली यानी आतिशबाजी।

मैं रजत, मुझे भी आम फर्रुखाबादी लड़के की तरह पतंगबाजी बहुत पसंद है ।
पर समय के साथ साथ हर चीज को मोबाइल फोन ने हम से छीन लिया है ,
खैर इस मोबाइल की बुराई तो होती रहेगी।

एक छोटी सी बात जो मुझे पतंग और मांझे ने सिखाई है वो बताना चाहता हूं।

अगर आप फर्रुखाबादी हैं तो आपको मालूम होगा ।
की फर्रुखाबाद में मांझा को रील भी कहा जाता है।

बचपन में जब मैं पतंग उड़ता था ,
तो मेरे साथ एक बहुत बड़ी दिक्कत होती थी,
मेरी रील (मांझा) बार बार उलझ जाती थी ,
क्योंकि मैं कभी भी अपनी रील को ध्यान से नही रखता था इधर उधर उतार देता था , उसके ऊपर खड़ा हो जाता था जिसे वो मेरे पैर में चिपक के उलझ जाती थी। और मैं भी आलसी था और मेरे मेरे अंदर धैर्य नाम की भी चीज नही थी, अपनी रील की कोई वैल्यू नही समझता था और उसे सुलझाने की जगह उस उलझे हुए हिस्से को तोड़ के वहां पर एक गांठ बांध देता था। क्योंकि उसे सुलझाने में काफी समय लग जाता था , और बसंत पंचमी के दिन मुझे थोड़ा सा भी समय व्यर्थ नहीं करना था । मैं पूरे दिन बस पतंग उड़ाना चाहता था ।

बार बार रील उलझने से मेरी रील में बहुत सारी बड़ी बड़ी गांठ हो जाती थी , क्योंकि मुझे गांठ बांधना अच्छे से नही आता था।
मैं जब भी पतंग उड़ता था, कुछ ही समय में या तो मेरी पतंग टूट जाती थी या उसे कोई न कोई दूसरा पतंग बाला काट देता था ।
इसी वजह से मेरी रील से कोई और पतंग उड़ाना पसंद नहीं करता था ।
मुझे ये बात अच्छी लगती थी, की मेरी रील कोई नही छूता , पर ये बात उतनी अच्छी थी नही ।

मैं ज्यादातर अपने बड़े भाइयों के साथ पतंग उड़ता था ।
जिसमे श्याम , उमेश , रामू , बृजेश, शशांक और अनूप भैया मुख्य रूप से थे , जो मुझे पतंगों के खेल के बारे में बताते रहते थे।

एक बार सभी लोग मेरी रील में गांठ को लेकर मेरा मजाक बना रहे थे ।
पहले से मुझे ये तारीफ लगी पर कुछ ही देर बाद मुझे समझ आया ये तो मेरा मजाक हो रहा है , मैंने भी गुस्से में आकर पूंछ ही लिया ।

"क्या ही खराब है मेरी रील में ऐसा जो आप लोग मजाक बना रहे है बस कुछ गांठे ही तो हैं, मुझसे वो बार बार उलझ जाती है बस इस वजह से । आप लोगो की तरह नही करता मैं की इतना वक्त बरबाद करूं रील सुलझाने में "


मेरे सारे भाई अपनी रील को बहुत ध्यान से रखते थे पहले तो पूरी कोशिश करते थे की उलझे नहीं और अगर उलझ भी जाती थी तो बहुत शांति और धैर्य से उसको सुलझा लेते थे । और उसके बाद भी पूरी कोशीश करते थे की गांठ न बने और अगर कोई गांठ बने भी तो उसको काट कर बहुत छोटा कर देते थे ।


मुझे भाइयों ने बताया की यही न करने की वजह से तुम्हारी एक भी पतंग ढंग से नही उड़ पाती या तो टूट जाती है या कोई आकर कट देता है




मैंने पूछा ऐसा क्यों होता है

तो मुझे बताया गया की
" रील ज्यादा उलझने से वो बहुत ही कमजोर हो जाती है क्योंकि वो कांच के बुरादे से बनी होती है उलझने पर और उसके आपस में रगड़ने से ऐसा होता है और जब तुम्हारी रील उलझती भी है तो तुम क्या करते हो उस उलझे हुए हिस्से को सुलझाने की जगह उसे तोड़ कर बहा पर गांठ बांध देते हो ।
और जब तुम किसी दूसरी पतंग से पेंच लड़ाते हो तब उसकी रील तुम्हारी उन्ही गांठों में फंस जाती है जिसे तुम्हारी पतंग कट जाती है और ज्यादा गांठ होंगी तो ज्यादातर तुम्हारी पतंग कट ही जायेगी।"


ऐसा होता है मैंने कभी नहीं सोचा , पर मैने अपनी आदतों को सुधारा और अपनी रील को बहुत संभाल के रखने लगा और मेरी पतंग टूटना और कटना भी कम हो गई थी , मुझे बहुत अच्छा लगता था क्युकी अब मैं पतंग उड़ा पता था लंबे समय तक ।


अब बचपन की तरह पतंग तो नहीं उड़ता पर हां बचपन की बातें याद आती रहती हैं , हमारी जिंदगी में भी ये मेरा पतंग और मांझे का खेल बहुत कुछ सीखता हैं

आपको पता है हमारी जिंदगी में हमारी खुशी और हमारे आपसी रिश्ते भी पतंग और मांझे की तरह है , जिसमें पतंग खुशी है और मांझा हमारे रिश्ते होते हैं
हम जिंदगी पतंग यानी खुशी के पीछे भागते रहते है और मांझे यानी रिश्तों पर उतना ध्यान नहीं देते ।

क्योंकि रिश्ते मांझे की तरह होते है इसीलिए

जैसे मांझा उलझ जाने पर कमजोर हो जाता है वैसे ही रिश्तों में भी आपसी उलझने आने से वो कमजोर हो जाते है,
जैसे मांझे को सुलझाने की जगह उसे तोड़ना नहीं चाहिए वैसे ही
रिश्तों को भी सुलझाना चाहिए तोड़ना नहीं।
क्योंकि जब रिश्ते टूटते है तो कितनी भी कोशिश कर लो उसमे गांठ पड़ ही जाती है जैसे मांझे में पड़ती है।
और इस गांठ का उपयोग दूसरे लोग आपके रिश्ते को फिर काटने में या कहे की तोड़ने में करते सकते हैं ।

तो इस बसंत पंचमी को मेरे भाइयों से मिली सीख को अपनाएं और अपने मांझे(रील) और रिश्तों को ज्यादा अहमियत दें, जिससे आप बसंत पंचमी पर पतंगो और ज़िंदगी में खुशियों का आनंद ले सके।

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© रजत पटवा