...

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मै अपराधी नहीं हूँ !!!! (pt-2)
मै भी उस शाम की राह देख रहा था.....

मै ना हमेशा बाबा पर ग़ुस्सा रहता था. रात अपने साथ एक सवाल लेके आती थी की काश बाबा नहीं होते तोह? लेकिन सुबाह इसका जवाब मिल जाता था. उनकी आदतों से चिड़कर मै कभी कभी बाबा पर चिल्लाता, अपनी आई पर चिल्लाता, बहन पर सब पर मै चिल्लाता. क्युकी वो दोनों बाबा को हमेशा सहन करते थे माफ़ किया करते थे . लेकिन मै ऐसा नहीं था. मुझसे अभी ये बर्दाश नहीं होता था. ऐसा लगता था की इन लोगो से कही दूर जाकर रहु, हर रात हमारे लिए बुरी होती थी. रोज झगड़े. और हर झगड़े मे मै हमेशा आई के साथ खड़ा रहता था. कही बार मै बाबा पर दौड़ पड़ता था. जी करता था की बाबा को मै.......... लेकिन मेरी आई बिच मे आजाती थी. बाबा पर चिल्लाने की जगाह वोह मुझ पर चिल्लाती थी. मै हमेशा सोचता की औरत जन्म मतलब पाप. क्युकी पैदा होते ही इन्हे "सब काम सिख़लो वरना ससुराल वाले क्या कहेँगे ", "वोह तुम्हरा पति है, वोह तुम्हरा भाई है, वोह तुम्हरा बेटा है, पिता है उनकी तुम सेवा करो ". हर जगाह से औरत का ही शोषण होता है. हर दर्द हमेशा औरत को ही दिया जाता है. मर्द ज़ब दारू पीकर घर आके झगड़ा करें तोह उसमे बुरा कौन औरत. क्यू? क्युकी अपना घर बार नहीं सभाल रही ना. मेरे लिए अब पानी सर से उप्पर चला गया था. मैंने ठान लिया था की आज अगर बाबा दारु पी कर आये तोह मै आज बता दूंगा. मुझे जिस शाम का इंतजार था वोह शाम आ चुकी थी. आज या तोह आर नहीं तोह पार.



© S.R.B.
3rd part will come tomorrow
dont forget to check
if you haven't read part-1 plz check it out first