...

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जिंदगी
मैंने जिंदगी से पूछा तो ऐसी क्यों है ? जिंदगी मुस्कुराई और बोलिए कैसी हूं मैं?
मैंने उसकी तरफ बड़े गौर से देखा और पूछा कभी में लगता है कि तू मेरी अपनी है और कभी लगता है की तू मेरी सबसे बड़ी दुश्मन है।
जिंदगी हंस पड़ी और कहने लगी ना तो मैं किसी की दुश्मन हूं और ना ही किसी की दोस्त,
बस मेरे लिए लोगों का अलग-अलग नजरिया है।
जिनका वक्त अच्छा हो और किस्मत उसके साथ हो उसे लगता है मैं उसके दोस्त हूं,
और किसका वक्त बुरा हो हर तरफ से बस ठोके ही खाने को मिल रही हूं और बार-बार गिर रहा हो उसे लगता है मैं उसकी दुश्मन हूं।
मैंने उससे कहा अच्छा तो किसी को इतना तुम क्यों रुलाती हो कि वह मौत मांगने लगता है,
और किसी को इतना हंसाती है कि वो मरना नहीं चाहता ।
जिंदगी हंसते हुए बोली तुम इतना क्यों सोचती हो
जाओ अपनी जिंदगी इन्जाॅय करो।
और ज़िंदगी मुझे वहीं हैरान छोड़कर आगे चली गई।