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राज़-ए-कत्ल
पूर्णिमा जबलपुर की रहने वाली एक सीधी-सादी लड़की थी,उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक अच्छे परिवार में करवायी। लड़के का नाम राज था,वह घर का सबसे बड़ा बेटा था,उसके छोटे भाई का नाम अमित था अमित से छोटे भाई का नाम सूरज था। वैसे तो यह एक सम्पन्न परिवार था, पर इस परिवार के कुछ सदस्य दहेज के लोभी थे।पूर्णिमा के माता-पिता गरीब थे इस कारण वे अपनी बेटी को ज्यादा कुछ नहीं दे पाए। इस वजह से पूर्णिमा को बहुत कुछ सहना -सुनना पड़ता था। वहीं दुसरी ओर अमित की पत्नी निशा, उसे उसके माता-पिता ने काफी-कुछ दहेज के रुप में दिया था। इसलिये अब राज पूर्णिमा पर बहुत ज्यादा गुस्सा करने लगा। शराब पीकर उस पर हाथ भी उठाता था। एक दिन राज ने पूर्णिमा से कहा, " अपने माँ- बाप से कह देना,या तो 5 लाख रुपये मुझे दे, नहीं तो तेरी खैर नहीं ।" अब पूर्णिमा से रहा न गया, उसने पलट कर जवाब देते हुए कहा, " अब अचानक इतने पैसे मेरे माता-पिता कहा से लाएंगे? और दोनो में बहस होने लगी। इतने में दोनो की आवाज़ सुनकर अमित ओर निशा उनके कमरे में चले आये। अपने भाई को रोकने की बजाय अमित ने उसका ही साथ दिया, उसकी पत्नी ने भी ऐसा ही किया। बात आगे बढ़ते-बढ़ते हाथापाई तक पहुच गयी। घर पर और कोई नहीं था। राज की माँ तथा भाई सुरज शहर से बाहर गये हुए थे। राज ने गुस्से-गुस्से में पूर्णिमा का गला दबा दिया, अमित ओर निशा भी इस मौत में शामिल थे। उन्होनें लाश को पंखे से टाँग दिया और आत्महत्या का मामला साबित कर दिया।
तीन महिनो बाद उस घर में खुशियों की शहनाई बजने लगी, अवसर था सूरज की शादी का। लड़की का नाम रेनू था, वह एक पढ़ी-लिखी समझदार लड़की थी, इत्तेफ़ाक़ यह था की वह पूर्णिमा की सहेली थी, दोनो में काफी अच्छी जान पहचान थी। शादी बहुत धूम-धाम व साज- बाज के साथ सम्पन्न हुई। अब समय आया दुल्हन के गृह प्रवेश का,
जब दुल्हन अपने कुमकुम से भरे कदम घर में रखने लगी तो वे कदमों के निशान अचानक उल्टे हो गये, यह सिर्फ़ राज ही देख पा रहा था।
•••••to be continued
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