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कृष्ण की कृपा
यह कहानी सत्य घटना से प्रेरित है। लेकिन भक्त के अनुरोध पर स्थान का नाम छुपा लिया है। और भक्त का नाम बदल दिया गया है।

एक लड़की थी। बचपन से ही श्री कृष्ण जी की भक्त थी। उसके माँ -बाप , दादा दादी-, नाना- नानी, मामा - मामी भी सभी श्री कृष्ण जी के अनन्य भक्त थे। उसकी तीन और बहने और एक छोटा भाई था। सभी जहाँ भी जाते तो श्री कृष्ण जी की लीला की चर्चा सुनने को मिलती। सुबह उठने से लेकर घर का हर काम करने तक सभी काम के समय श्री कृष्ण चर्चा होती रहती थी। बड़े बजुर्ग हर काम करते हुए श्री कृष्ण श्री कृष्ण का मन ही मन उच्चारण करते रहते। यही गुण सभी बच्चो में भी आ गए थे। पिता जी गाने बजाने का काम करते थे। और जगराते में जाते रहते थे। इसी लिए घर में भी अभ्यास करते तो बच्चों लो भी गाने का शौक हो गया था। खासकर बड़ी बेटी लवली को भी। जब भी वो गाती तो उसके मन में श्री कृष्ण लीला के भाव छलते रहते। वो उन्ही लीला को देखते देखते गाती।

और उसे सुनने वाले भी श्री कृष्ण लीला में भाव विभोर होते रहते। एक समय सा बंध जाता। समय के अनुसार सभी बड़े भी हुए पिता ने किसी तरह उच्च शिक्षा दिलवा दी। और वो सरकारी स्कूल में अध्यापक के तौर पर लग गई। अध्यापक बन जाने पर वो अपने पिता के कार्य में हाथ बटाने लगी। जिससे उसके छोटी बहनों और भाई की पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आई। एक दिन ऐसा भी आया जब उसकी शादी हो गई। उसका पति भी सरकारी नौकरी में कार्यरत था। लेकिन वो सारा परिवार एक नंबर का लालची परिवार। पैसे के लिए रोज़ लवली को तंग किया जाने लगा। जहाँ तक की उसकी सारी तनख्वाह वो खुद रख लेता था। और उसे अपने मायके से और पैसे लाने के लिए कहता रहता था। लेकिन लवली अपने छोटे भाई बहनों का सोचकर अपने मायके में कुछ नहीं बताती थी। एक वार उसका पति रात को उसे रास्ते में छोड़ गया। तो एक परिवार गाड़ी से माता चिंतपूर्णी जा रहा था। जब उन्होंने देखा की एक भली लड़की रास्ते में अकेली रोते हुए जा रही है। तो उसके परिवार ने दया करके उसे उसके मायके तक छोड़ गए। जहाँ से उसका पति लेने कभी नहीं गया।
इस तरह लवली के माँ -बाप को भी पता लग ही गया। और एक समय ऐसा भी आया जब दोनों में तलाक हो गया। लवली के माँ -बाप ने उसे अपने घर में छत पर एक कमरा, बाथरूम और किचन बनाकर दे दिया। लवली के छोटी बहनों और भाई की भी एक एक करके शादी हो गई। लवली के एक बेटा भी हुआ। जिसे कोई देखने नहीं आया। लवली ने अकेले ही उसकी परवरिश करनी शुरू की। उसे उसके गुरु महाराज जी ने बहुत सहारा दिया। उसे अपनी बेटी की तरह समझाते रहते की उसके भाग्य में ज्यादा दुःख थे। लेकिन श्री कृष्ण जी और राधा रानी जी की विशेष कृपा के कारण ही वो बच सकी है। वर्ना वो आज कब की खत्म हो गई होती। कई वार वो उदास होती तो कभी उसके साथ पढ़ाने वाले और कभी गुरु बहनें उसे ढाढ़स बंधाती। अगर एक वार उसका पति उसे मिलने आया भी तो अपने छोटे बच्चे को सीढ़ियों के किनारे रखकर खुद कमरे में चला गया था। तब कमरे में बंद लवली बहुत रोती रही । गिड़गड़ती रही। लेकिन उसकी एक न सुनी गई।

तब एक छोटे बच्चे ने जोर से आवाज लगाकर लोगो को इकठ्ठा करके बचाया था। समय के अनुसार उसकी माँ ने भी अपने आप में वदलाब कर लिया था। जो लवली को बिना नहाये किचन में जाने नहीं देती थी। वो अपनी बहु को बिना नहाये, बिना ब्रश किये जाने देने लगी थी। लवली अकेले में सोचती रहती की समय के अनुसार अपने भी कैसी बदल जाते है। कायदे कानून बदल जाते है। जो लड़की सारा दिन हंसती रहती थी। वो उदास रहने लगी थी। सारा दिन खुद को अपने काम में खपाये रखती। खुद के लिए एक मिनट का भी समय नहीं निकालती थी। कई वार किसी साधु महाराज को भोजन कराने बैठ जाती तो भाव बिभोर होकर और खाने की जिद्द करती। इस तरह घर वालों के और रिश्तेदारों के हंसी का कर्ण बनती। यह भी नहीं सोचती की दुनिया उसके भाव नहीं समझती। बल्कि उसे भोली समझकर लुटती है।
इसी तरह ज़िंदगी चल रही थी। की एक वार उसके मन में विचार आया की राधा रानी और श्री कृष्ण जी के लिए खुद अपने हाथों से भोजन तैयार करके उन्हें बनाया जाये और भोग लगाया जाये। सुबह जल्दी साढ़े तीन बजे उठकर भोजन तैयार करना शुरू किया। मंदिर में ग्यारह बजे भोग लगता था। जब सारा भोजन बन गया। तो उसे नींद ने आ घेरा। और भोग का समय निकल गया। और उसके सोते समय घर में एक कुत्ता घुस आया और उसकी बनाई रोटियां लेकर भाग गया। वो बहुत दुखी हुई और राधा रानी से शिकायत करती हुई कहती की मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ? मैं आपको भोग क्यों नहीं लगा पाई ? तो उसे अपने अंदर से आवाज़ आती की की पुत्री, देखो दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है। वो उस समय मेरे नसीब में नहीं था, इसलिए उस समय मुझ तक नहीं पहुंचा।
लवली थोड़ा गुस्से में बोली, प्रभु आपके भाग्य में भी नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है ? कल देखना मैं अवश्य आपके लिए भोजन लाऊंगी। दूसरे दिन लवली और जल्दी उठकर बढ़िया से बढ़िया पकवान बनती है। और मन में पक्का निच्छय करती है की वो आज नहीं सोयेगी। मंदिर के रास्ते में उसे भूखा बच्चा नज़र आता है। वो लवली के पास जाकर अपने पेट पर हाथ रखकर कुछ देने की गुहार लगाता है। एक तो नारी मन और उप्पर से कृष्ण भक्त। उसे दया आ जाती है। वो बच्चे को ऊपर से नीचे देखती है। तक़रीबन ६ से ७ साल का रहा होगा। बस हड्डियों का ढांचा प्रतीत होता था। और वो एक लड्डू निकालकर उस बच्चे को दे देती है। वो देखती है की बच्चा बहुत तेज़ी से लड्डू खा गया।
उसे लगा की बच्चा कई दिनों से भूखा है . उसने और दो तीन लड्डू उसे खाने को दे दिए। जैसे ही वहाँ उस बच्चें को लड्डू देती हैं, बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती हैं, ना जाने कितने दिनो के खाए पीए नही, लवली को उन पर करूणा आ जाती है उन सब को पकवान बाँटने लगती हैं, देखते ही देखते वो सारे पकवान बाँट देती हैं, फिर उसे याद आता हैं, आज तो मैंने राधें को भोग लगाने का वादा किया था, पर मंदिर पहुंचने से पहले ही मैंने भोग खत्म कर दिया, अधूरा सा मन लेकर वहाँ मंदिर पहुँच जाती हैं। और राधा कृष्ण की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े बैठ जाती है। और उसकी आँखों से आंसू बहने लगते हैं। तभी एक तेज़ रौशनी होती है। और कान्हा प्रकट होते है। और उससे कहते है की लाओ कहाँ है मेरे लड्डू ? लाओ जल्दी लाओ मेरा भोग मुझे दो। बहुत भूख लगी हैं, मुझे पकवान खिलाओं। सुबह से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ। लवली रोते रोते सारी व्यथा श्री कृष्ण को बता देती हैं। कान्हा कहते है, मैंने कहा था न की दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है। उन दानो पर बच्चो का नाम लिखा था। फिर मैं भी नहीं खा सकता था। जिसका नाम था उसने खा लिया तुम क्यू व्यर्थ चिंता करते हो !
लवली कहती है, प्रभु मैंने बड़े अंहकार से कहा था, आज आपको भोग लगाऊंगी पर मुझसे उन बच्चों की करूणा देखी नही गयी, और मैं सब भूल गई।
कान्हा फिर मुस्कुराते और कहते हैं, चलो आओ मेरे साथ, और वो लवली को उन बच्चों के पास ले जाते हैं जहाँ लवली ने उन्हें खाना खिलाया था, और लवली से कहते हैं जरा देखो, कुछ नजर आ रहा हैं...
लवली की ऑखों से ऑसूओं का सैलाब बहने लगता हैं, स्वंय बाँके बिहारी लाल, उन भूखे बच्चों के बीच में खाना के लिए लड़ते नजर आते हैं, कान्हा कहते हैं वही वो पहला बच्चा हैं जिसकी तुमने भूख मिटाई, मैं हर जीव में हूँ, अलग_अलग भेष में, अलग_अलग कलाकारी में, अगर तुम्हें लगें मैं ये काम इसके लिए कर रहा था, पर वो दूसरे के लिए हो जाए, तो उसे मेरी ही इच्छा समझना, क्योंकि मैं तो हर कहीं हूँ, बस दानें नसीब की जगह से खाता हूँ, जिस जिस जगह नसीब का दाना हो वहाँ पहुँच जाता हूँ, फिर इसको तुम क्या कोई भी नही रोक सकता, क्योंकि नसीब का दाना, नसीब वाले तक कैसे भी पहुँच जाता हैं, चाहें तुम उसे देना चाहों या ना देना चाहों अगर उसके नसीब का हैं, तो उसे प्राप्त जरूर होगा....
लवली कान्हा के चरणों में गिर जाती है। और कहती है की प्रभु अगर आप सब जगह हो तो जब मुझे आपकी सबसे ज्यादा जरुरत थी। तब आप कहाँ थे ?
श्री कृष्ण बोले, की उस रात जो परिवार तुम्हें घर छोड़कर गया वो मेरे द्वारा ही भेजा था। जब तुम अपने बच्चे को गिराने का मन बना चुकी थी। तब मैंने आकर ही उसे बचाया था। जब तुम बहुत उदास थी। तब गुरु रूप में मैंने ही तुझे सांत्वना दी थी। जब जब तुम कभी टूटती तो कभी तुम्हारे दोस्त के रूप में कभी भाई के रूप में मैं ही आता रहा। तुम मुझे ढूंढती तो रही। बस पहचान नहीं सकी। तुम कहती तो रही की सभी में परमात्मा है। और देखती भी रही। लेकिन जब ज्यादा उदास हुई तब दूसरों में मुझे देखना भूल गई।
लवली:- लेकिन जिसने मुझे जन्म दिया, जी भाई बहन साथ खेले और बड़े हुए उन्होंने भी बुरे बक्त में साथ क्यों छोड़ा ?
श्री कृष्ण :- क्योंकि तुम्हे मोह माया से बचाया जा सके।
लवली :- और जिन्हें आपने भेजा था। क्या उनसे लगाव कर सकती हूं?
श्री कृष्ण :- नहीं। क्योंकि वो समय समय पर तुम्हारी सहायता करने आएगें। अगर अपनों से मोह नहीं करना । तो दूसरों से भी नहीं करना। बस उनकी इज्जत करो। जब तक तुम्हारी सहायता करते हैं।

लवली की आँखों में आंसुओं की धरा और तेज़ हो गई। और रोते रोते बोली, प्रभु मेरा इस नारकीय जीवन से छुटकारा कब होगा ? आपकी माया से कब मुक्ति होंगी ?
श्री कृष्ण बोले, जब जीव अपने पराबध के बोझ से मुक्ति पा लेता है। जब तुम्हारे पिछले कर्म ख़तम हो जायेगे। तब तुम एक पल नहीं रुक सकोगी। हाँ समय से पहले अपने कर्मो से भागने का प्रयत्न करोगी तो फिर से कई जन्म लेने होंगे।

लवली चरणों में झुकी हुई बोली की प्रभु आपकी माया, आप ही जानें!
प्रभु मुस्कुराते हैं और कहते हैं कल मेरा भोग मुझे ही देना दूसरों को नही, प्रभु और भक्त हंसने लगते हैं.....!!
अचानक लवली को मंदिर का पुजारी उठाने आ जाता है। और कहता है की तुम भगवान को भोग लगाने आई थी या बेहोश होने ? जहां ऐसा क्या हुआ जो तुम बेहोश हो गई?
लवली ने कहा, मुझे नींद आ गई थी। लेकिन असल में तो लवली को अपनी सभी बातो का जवाब मिल चूका था।

"आप लोगो के भी साथ ऐसा कई बार हुआ होगा मित्रों, किसी और का खाना, या कोई और चीज किसी और को मिल गयी, पर आप कभी इस पर गुस्सा ना करें, ये सब प्रभु की माया हैं, उसकी हर इच्छा में उनका धन्यवाद करें"..
जय जय श्री राधे कृष्ण जी