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World Ozone Day
"विश्व ओजोन दिवस"

"मैं सम्पूर्ण प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूं।"

पृथ्वी के चारों ओर ओजोन एक प्रकार की गैस होती है जिसमें ऑक्सीजन के तीन घटक होते हैं। जिसे रसायन विज्ञान की भाषा में O3 कहते हैं। यह गैस पृथ्वी से एक निश्चित दूरी पर गोलाकार रूप में प्राकृतिक रूप से पृथ्वी को घेरे रहती है। यह ओजोन गैस की परत सूर्य से आने वाली घातक अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से पृथ्वी में रह रहे जीव जंतुओं की सुरक्षा करती है।

सूर्य हमें जीवन देता है। उधर यदि सूर्य बुझ जाए तो इधर हम सभी जीव प्राणी मनुष्य मात्र का जीवन पल भर में समाप्त हो जायेगा। सभी तत्वों में मूल तत्व अग्नि का स्रोत भी सूर्य ही है और प्रकाश का स्रोत भी सूर्य ही है। फिर भी सूर्य से घातक किरणें भी निकलतीं हैं। ये घातक किरणों के प्रभाव से जीवन संभव नहीं है। प्रकृति की सुव्यवस्था पर विचार कीजिए। हैरानी होती है। यह विश्व ड्रामा वंडरफुल बना हुआ है। इसमें यह प्रकृति की व्यवस्था भी बड़ी वंडरफुल है। प्रकृति को यह कैसे पता है कि पृथ्वी के चारों ओर एक ऐसी गैस की परत बिछानी जरूरी है जिससे सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से सर्व जीव आत्माओं के जीवन को सुरक्षित रखा जा सके। यह कैसे और किसको पता चला कि अल्ट्रा वॉयलेट किरणें जीवन के लिए हानिकारक होती हैं? अल्ट्रा वायलेट किरणों से सुरक्षा के लिए यह ओजोन गैस बिछाने में किसका हाथ है? विचारणीय है। यह क्या स्वत ही हो गया?

हम कहते हैं कि यह विश्व ड्रामा बना बनाया है। इसे किसी ने भी बनाया नहीं है। तो फिर इतनी सुदृढ़ और सटीक व्यवस्था करने वाला कोई भी नहीं है। कितने आश्चर्य की बात है कि प्रकृति की इस बहु आयामी और बहु विधि व्यवस्था में यह सब अपने आप हो रहा है। कभी कभी हम प्रकृति के अंदर हो रही बहुत सी बातों के लिए, यह कुदरत है, ऐसा कहकर छोड़ देते हैं। यह कुदरत ही एक विश्व चेतना है जो अव्यक्त से भी अव्यक्त होती है। यह ही मनुष्य आत्माओं के संवेदनाओं की जागृति के लिए परम आश्चर्य की बात है। बहुत से लोग कहते हैं कि यह सब ड्रामा है। इसमें आश्चर्य की क्या बात है। लेकिन ऐसा कहने वाले लोगों की संवेदनाएं प्राय: कुंठित ही रहती हैं। ऐसी आत्माओं में विश्व चेतना की दिव्य अलौकिक व्यवस्था को देखने समझने के हार्दिक भाव का अभाव रहता है। ऐसी आत्माएं प्रकृति के उपकारों का धन्यवाद नहीं कर सकती हैं तो वे परमात्मा के उपकारों का धन्यवाद कैसे कर सकेंगी!? विचारणीय है। जिनका हृदय परमात्मा के उपकारों के प्रति हार्दिक धन्यवाद के भाव से नहीं भर जाता उन्हें परमात्म मिलन के अनुभव हों, ऐसी संभावना बहुत कम होती है। प्रकृति के हमपर अपार उपकार हैं। प्रकृति का उपकारों का अनुग्रह अनुभव करें।