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एक दास्तान संवाद केंद्र वैशया थाना गुहार करी।।
दर्द की पीड़ा में मुझसे चला नहीं जा रहा था, परन्तु मैं उन ज़ालिमो को सज़ा दिलवाले के लिए
मैं पुलिस थाणे जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाने पहची। लेकिन मालिक का नाम सुनकर और उनके ऊंचे रसूख के चलते पुलिस ने मुझ पर ही
कीचड़ उछालना शुरू कर दिया और मुझे वैशया
बोल कर मेरी रिपोर्ट दर्ज किए वहां से भागा दिया । अब आस पड़ोस गली मोहल्ले में हर कोई मुझे गन्दी नज़रों से देखने लगा था।।
बेटी की बदनामी की बदनामी और बीमारी को झेलते हुए मां चल बसी ! मैं जहां भी नौकरी मांगने जाती थी हर कोई यही कहता अच्छा तुम ही हो ना वो जिसने राकेश बाबू पे झूठा इल्जाम लगाया था ,अब क्या हमें बदनाम करने आई हो चलो जाओ यहां से !कह कह हर कोई भगा देता ।हमारा गुजारा करना मुश्किल हो गया था ।भाई बहनों को स्कूल से हटाने तक कि नौबत आ पड़ी थी। फिर मज़बुरन मां के गहने बेचने पड़े ।।
उन रूपयों के साथ हम रोज़ अपने घर का चूल्हा जलाते , और मैं रोज नौकरी की तलाश में धक्के
खाती । एक दिन अचानक मुझे बुखार आ गया । मैंने सरकारी अस्पताल में जाकर अपना चेकअप कराया तो मुझे पता चला कि मैं एड्स का शिकार हूं ।। यह सुनते ही मैं सदमे में आ गई , मैं जान गई थी कि यह बीमारी मुझे उन दरिंदों ने ही दी है !
अब मेरी बची कुची जिन्दगी भी खत्म
हो गई थी,अब मुझे रोज़ यही डर सताने लगा था, कि मेरे मरने के बाद मेरे भाई बहन क्या करेंगे? उनको उनको भी मेरी तरह दर दर ठुकरे खानी पड़ेगी! और मेरी बहनों के साथ भी वही घिनौना अंजाम हो सकता है, जो मेरे साथ हुआ है। मैं जिन्दा लाश बन चुकी थी लेकिन मैं नहीं चाहती थी लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बहनों को भी यह सब छेलना पड़े । और तब मैंने कलकत्ता आकर नौकरी करने का फैसला किया। परन्तु यहां भी नौकरी नहीं मिली ।।
तो मेरे साथ अन्दर मर्द जाती के लिए बेहद नफरत और क्रोध पैदा होने लगा।। इस लिए मैंने उन मर्दों से बदला लेने के लिए एक वैश्या बनने कि सोची , और वैशया बन गई,अब मैं उनसे रूपए लेकर उनको अपनी बीमारी दे देती हूं। और उन रूपयों को अपने भाई बहनों के पास भेजती हूं ।। इस से अपना बदला भी ले रही हूं और भाई बहनों का भविष्य भी बना रहीं हूं।।
लेखक अंक प्रस्तुति अस्तित्व की आसीमता में एक दास्तान में सौदामिनी बनकर बनकर प्रतिसोध की ज्वाला का आगमन दैविकता की स्तुति का नाश का यह गाथा अनन्त में दिखाती है।।
#असतिव नाश।।
#प्रतिसोध।।
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