...

17 views

" धोखा "
" धोखा "

कहानी में मासूम बच्ची को किस तरह धोखा दिया गया है अपनो के द्वारा इसको अक्षरों में समेटने की छोटी सी कोशिश की गई है।
💔💔💔💔💔💔💔💔💔💔

रजनी अपने मायके में एक बेटी को जन्म देती है और इसकी खबर चिट्ठी लिखकर रजनी के पिता नत्थूराम द्वारा अपने दामाद को सूचित किया जाता है।

दिन गुजरे , और देखते-देखते महीने भी गुजरने लगे परंतु परदेश से दामाद ने कोई जवाब नहीं दिया।

रजनी भी रोजाना इंतज़ार में डाकिया के पीछे दौड़ लगाती और पूछती बाबूजी मेरे नाम कोई चिट्ठी लाए क्या..?
डाकिया जवाब में ' नहीं ' कहकर निकल जाता और रजनी मायूस होकर लौट आती।

खुद से जाने कितने सवाल करती कि उससे ऐसी कौन सी गलती हुई जो उसका पति मोहन इस तरह कर रहा है।

मोहन पहले ही नहीं चाहता था कि रजनी माँ बने लेकिन रजनी को लगता था कि वह बच्चे को जन्म दे देगी तो उनके रिश्ते में सुधार आने लगेगा।

जब रजनी ने पहली बार मोहन को बताया कि वह गर्भवती है तब वह उस बच्चे को गर्भ में ही मारने की पुरजोर कोशिशें करता रहा लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली।
बहुत सी दवाईयां रजनी को खिलाता जिससे गर्भपात हो जाए।

ईश्वर ने ऐसा होने नहीं दिया और रजनी अपने मायके आ गई।
जिसके लिए मोहन रजनी से दूरी बनाए हुए बैठा है।

छः महीने गुजर गए मोहन ने रजनी और बच्ची की कोई खबर नहीं ली।
रजनी उदास रहने लगी और उसे अपने भविष्य की कल्पना मात्र से सहम जाया करती थी।

कभी कल्पना भी नहीं की थी लव-मैरिज जिसे परिवार वालों ने पहले तय किया उसके बाद रजनी को उस व्यक्ति विशेष से प्यार हुआ। रजनी के पिता ने पहले ही उस व्यक्ति को अपना दामाद मान लिया था जब रजनी मात्र नौ साल की थी।

कोरे मन में रजनी के मोहन की छाप छोड़ गई और वह उसके सपने देखने लगी ।

रोज सुबह रजनी कुएं से पानी लेने जाती थी । इधर मोहन भी पानी लेने के लिए आता था। कई बार मोहन रजनी की मदद करता कलश को उठाने में और दूसरा कलश उसके सिर पर रख दिया करता और रजनी एक कलश अपने कमर पर लाद कर हौले-हौले पगडंडियों से होती हुई दूर अपने घर पहुंचती।

रजनी के पिता नत्थूराम सिंचाई विभाग के मामूली से कर्मचारी हैं। मोहन एक परदेशी जिसे यहां की भाषा नहीं आती है। इसलिए नत्थूराम ने मोहन को बेटा बनाया। रोज ड्यूटी के पश्चात मोहन नत्थूराम के कहने पर रात को उनके घर पहुंचता और रात का भोजन उनके साथ करता और अपने घर जाकर सो जाता।

धीरे-धीरे मोहन को भी रजनी से प्यार हो गया। रजनी उम्र में मोहन से पूरे दस साल छोटी थी। नादान क्या जाने कि उम्र का फ़ासला क्या होता है ?
अभी रजनी का बचपन गया भी नहीं था और एक नए रिश्ते का सफ़र सुहाना प्रीत भरा प्रतीत हो रहा था।

कुछ समय बाद मोहन को नई नौकरी मिल गई और वह वहां से दूर रहने चला गया।
अब चिट्ठी का सहारा था दोनों के बीच अपनी बात कहने के लिए।

रजनी जवान हुई तो रजनी के पिता ने उसे
हास्टल भेज दिया जहाँ गृहस्थी की शिक्षा दी जाती थी। दो साल वह वहां से लौटी तो रजनी की खूबसूरती में निखार आया।
सुंदर दिखाई देने वाली रजनी अब लोगों के निशाने पर है।

नत्थूराम चाहते थे कि जल्दी ही मोहन से रजनी का विवाह हो जाए। रजनी अठारह वर्ष की आयु में पहुंच गई थी।
मोहन और रजनी दोनों अलग प्रदेश के वासी हैं इसलिए नत्थूराम ने मोहन से अपने बेटी के रिश्ते के लिए अपने घरवालों से बात करने को कहा ।

जैसे तैसे मनवा लिया घरवालों को मोहन ने और शादी हो गई लेकिन मोहन के घर वाले शादी में शामिल नहीं हुए।

शादी कर मोहन रजनी को अपने साथ ले गया परदेश में और नए सफ़र की शुरुआत हुई। तत्पश्चात दोनों में मनमुटाव होने लगा।

मोहन के कंधों पर पर अपने सात छोटे भाई और दो बहनों की जिम्मेदारी थी। यही वजह है कि वह अभी बच्चे नहीं चाहता लेकिन रजनी कुछ और चाह रही थी।

अब नतीजा सामने है रजनी अकेली हो गई।
दिन गुजरते रहे एक दिन अचानक मोहन रजनी के घर पहुंचा तो सब खुश हो जाते हैं।

कुछ दिनों तक रजनी के साथ रहने के बाद मोहन अकेले ही लौट जाता है। घर वाले और रजनी कुछ समझ नहीं पाते कि मोहन ने ऐसा क्यूँ किया?

कुछ समय पश्चात फिर मोहन अपने ससुराल की चोखट पर पहुंचा और अपनी बेटी से खूब नजदीकियाँ बढ़ाने लगा। यह सब देखकर रजनी और घर के सभी सदस्य बहुत खुश हुए।

इस तरह मोहन बार बार आता और रजनी के बिना घर लौट जाया करता।
अब रजनी की बेटी एक साल की होने पर थी कुछ दिन शेष रह गए।

मोहन अचानक फिर ससुराल पहुंचा और उनके साथ रहा। बेटी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त गुजारने लगा ताकि वह मोहन से भलीभांति हिल मिल जाए।

अब वह रजनी और बेटी को साथ लेकर जाने की मांग करता है। एक पिता के लिए इस से बढ़कर खुशी की बात क्या होती?
उनके चेहरे पर मुस्कान छाई और रजनी अपने बेटी के साथ पति के घर पहुंची।

थोड़े दिन बाद बेटी एक साल की हुई और उसके जन्म दिन पर मोहन ने अपने परिचित लोगों को निमंत्रण दिया। सब इकठ्ठे हुए खुशियाँ बांटे और सब रात में अपने घर को लौट गए।

कुछ दिनों के बाद मोहन अपनी बेटी को अकेले लेकर रेलगाड़ी से कहीं दूर भाग गया। उस मासूम को उसकी माँ से दूर कर के भाग गया। अबोध बेटी अपने पिता का दामन थाम कर चली जा रही थी जिसे यह नहीं पता कि आगे क्या होने वाला है उसके साथ ? वह मस्ती करती तो मुस्कुराती और अपनी तुतली जुबान से पप्पा मम्मा कहती जो अभी-अभी सीख ही रही थी।

तीन दिन के सफ़र तय कर मोहन अपने मायके पहुंचा और बेटी को उनके हवाले कर के वापस लौट आया अपने घर जहाँ उसकी नौकरी थी।

रजनी रोती बिलखती हुई मोहन से पूछा कि तुम इतने दिनों से कहाँ थे और बेटी कहाँ है ? रजनी मोहन की छाती पर क्रोध से लपकी कि उसे वह जवाब दे परन्तु मोहन ने उसे ताबड़तोड़ उसे पीटने लगा।

उधर मासूम बच्ची के लिए सब अजनबी थे। वह अपने माँ-बाप को अपने पास नहीं पाकर व्याकुल एवं व्यथित अवस्था में रोए जा रही थी।

कोई भी जज़्बात उसके समझ नहीं रहा था कि उस मासूम की ख़ता क्या है ? जो उसके अपने पिता ने इतनी बड़ी हृदय वेदना से उसे छलनी कर दिया था।

वह चीख-चीख कर रोए जा रही थी कि मेरी माँ कहाँ है मेरे पप्पा कहाँ गए?
कौन उस मासूम को बता पाता कि उसके साथ क्या हुआ है?

बेटी पाँच साल की हो गई थी लेकिन वह अपने माता-पिता के चेहरे को भुल चुकी थी।
कुछ स्मृतियाँ उसके अवशेष मन में पीड़ा को जन्म देती थी।

बस उसे यह बताया गया था कि वे लोग उसके माता-पिता नहीं हैं। हमने तुम्हें पाला है। तुम्हारे पप्पा तो परदेशी हैं और दूर रहते हैं। वही तुम्हें हमारे पास छोड़ गए हैं..!

रजनी अपने किसमत से बेबस लड़ रही थी।
मोहन रजनी को त्याग देने के मकसद से बेटी को हमेशा के लिए उससे जुदा कर दिया।

एक बेटी को अपने पप्पा से ही धोखा मिला नन्ही सी जान कभी अपने दर्द से उबर ही नहीं पाई। जैसे-जैसे बड़ी होती गई वैसे-वैसे जमाने से धोखा मिला।

आज बेटी यह कह कर खुद को बहलाती है कि जब अपने ही अपने खून को धोखा दें सकते हैं तो बाकी सब दुनियाँ वाले तो ग़ैर हैं!
एक पप्पा जिसने बेटी से उसके होंठों से मुस्कान और खुशियाँ छीन लिया उसके जीवन को कांटों से भर दिया..! कैसे प्यार करे .. बेटी ?

🥀 teres@lways 🥀