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आत्मसंयम!
आवश्यक नहीं कि हर बात पर react ही किया जाए। हमें किसी की कही बात बहुत चुभ सकती है। हो सकता है कोई व्यक्ति बेहद बदतमीज और बददिमाग हो किन्तु जो बुद्धिमान होते है, वे बड़े ही सलीके और तहज़ीब से ऐसे लोगों को टाल देते हैं। विषय बदल देते हैं। यहां तक कि संस्कार विहीन व्यक्ति को शीतल जल या चाय तक offer करते हैं।

हमें मानकर चलना चाहिए कि ऐसे बदज़बान लोग ज़ेहनी तौर पर कमज़ोर होते हैं। हमें ये भी मानना चाहिए कि हम ऐसे लोगों से ज़ेहनी तौर पर बहुत ज़्यादा सशक्त हैं। हमारा संयम और आत्मनियंत्रण कमाल का है। हमें किसी के nature की कमज़ोरियों के कारण विचलित होने की कतई आवश्यकता नहीं है।

यह भी संभव है कि ऐसे लोगों को मुंह लगाने पर छोटी सी बात बहुत बड़ा मुद्दा बन जाए। मूर्ख व्यक्ति तो इस बात को भी अपनी उपलब्धि समझेगा लेकिन आप फ़िज़ूल में उलझ जाएंगे।

लोगों की बेहूदा बातों को टाल देना, उन पर प्रतिक्रिया न देना या सरलता दिखाते हुए मौन रहना भी सामाजिक कुशलता का ही परिचायक है।

हां, लेकिन जब बात सचमुच आत्मसम्मान की हो, राष्टूसम्मान की हो और कोई हाथापाई पर ही उतर आए तो फ़िर ‘सौ सुनार की और एक लुहार की’ कहावत को अमली जामा पहनाना इंसानी फ़र्ज़ है। ‘विषस्य विषमौषधम्’ अर्थात विष ही विष की दवा है। 'सर्जिकल स्ट्राइक' ऐसी हर स्थिति में प्रभावी है। मेरा इशारा तो आप समझ ही गए होंगे।


—Vijay Kumar
© Truly Chambyal