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तुम बहुत याद आए बापू…
तुम बहुत याद आए बापू….

तुम बहुत याद आए बापू …उस दिन जब में ट्रेन के सफ़र में था और मेरे सामने वाली सीट थोड़ी फटी हुई थी जिसके पास बैठा हर आदमी उस फटे हुए हिस्से को नज़रअंदाज़ करते हुए उसी पर धमक कर बैठ जाता था…उस दिन तुम बहुत याद आए बापू ।

उस दिन भी तुम बहुत याद आए बापू … जिस दिन ट्रेन के गेट के पास लटके हुए भिखारी को कुछ पुलिस वालों और टी.टी ने धक्का मार कर रेल से नीचे गिरा दिया था और वो बेबस लाचार सा उन्हें बस देखता रह गया था…उस दिन भी बहुत याद आए थे बापू ।

और उस दिन भी तुम बहुत याद आए थे बापू….जब किसी रेस्तराँ में एक विदेशी महिला के इर्द-गिर्द सांरगी बजाते हुए वो बालक उस विदेशी महिला को रिझाने का प्रयास कर रहा था और वह महिला उस बालक की उम्र देख तरस खाकर उसे नज़रअंदाज़ कर रही थी…..सच में उस दिन भी तुम बहुत याद आए थे बापू ।

उस दिन भी तुम बहुत याद आए बापू….जब गॉंव के एक छुटभैया नेता ने सरकार के विरोध में मोर्चा निकाला और पुलिसकर्मियों के लट्ठ चलते ही मोर्चा निकालने के बजाय उसने पाला बदलते हुए उन नेताजी ने जेल भरो आंदोलन की अभिशंसा करना शुरू कर दी थी …क़सम से उस दिन भी तुम बहुत याद आए बापू ।

उस दिन भी तुम बहुत याद आए बापू ….जब मनरेगा में कुशल युवक के बजाय ठेकेदार के बेटे को सिर्फ़ इसलिए मेट बना दिया गया की वो सरपंच का करीबी व पसंदीदा उम्मीदवार था ….सच कह रहा हूँ बापू उस दिन भी तुम बहुत याद आए थे ।

और वह दिन कैसे भूल सकता हूँ बापू….जिस दिन गॉंव में दो भाइयों के ज़मीन के बँटवारे के बीच में सारा गाँव लट्ठ लेकर आ धमका और गॉंव के सरपंच ने बीच बचाव करने के बजाय मौन रहकर वो मारकाट हो जाने दी थी ……क़सम से बापू तुम उस भी बहुत याद आए थे।

तुम अक्सर याद आते हो बापू….उस दिन जब मैं ख़ाली जेब था और पास में फूटी कौड़ी भी नहीं थी उस दिन भी तुम बहुत याद आए थे बापू…….वैसे भी यूँ तुम्हें यूँ भुला देना आसॉं नहीं है, आख़िर आज सब कुछ तुम्हारी तस्वीर देखकर ही तो चलता है….काम-धाम, दुनियादारी, घर -परिवार और रोज़ रोज़ के सामाजिक और राजनीतिक चौचले भी तो तुम्हारी ही तस्वीरों के भरोसे चल रहें हैं ना बापू…..यूँ तो कहते भी हैं ना की…”रूपी लाल पल्ले तो सारे काम चल्ले”।

तुम्हारी याद में अश्रुपूरित श्रद्धांजलि बापू….तुम हमेशा याद आओगे।

…तुम बहुत याद आए बापू
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