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एक कहानी यह भी
#TheWritingProject


कुछ चीजें स्वयं घटित होती है , हमारे सोच -विचार से भिन्न , अनायास ही हंसते हुए हम मौन हो जाते हैं , मुस्कुराते वक्त स्वतः ही दृग भर आते हैं, शीतल समीर तीव्रता से बहती है पर हम भीतर से सुलग रहे होते हैं , सुलझने से कहीं बेहतर हमें उलझन में रहना भाता है , प्रत्यक्ष है सबकुछ पर आंखों पर आवरण चढ़ाए फिरते हैं , क्षणिक आस्वादन हेतु मृगतृष्णा में भटकते हैं , ना केवल एक बार अपितु हरबार ।
दृष्टि होने पर भी वो नहीं देख पाते जो दृष्टव्य है , बल्कि वो देखते हैं जो अस्तित्वहीन है । समझने से अत्यधिक समझाने में विश्वास रखते हैं, संभलने से अधिक , गिराने में प्रफुल्लित होते हैं ,,
परंतु जब एकाकी होकर सोचते हैं तो भान होता है कि सबकुछ व्यर्थ था , हमारी क्षणिक अनुभूति, तर्क, योजना , हर्ष , उन्माद , अवसाद ।

रागिनी के जीवन की भी कुछ ऐसी ही कहानी है , अपनी वास्तविक चाहत से वो स्वयं अनभिज्ञ थी , परंतु वक्त के साथ उससे भी तीव्रता में आगे बढ़ने को आतुर थी ।
तीन साल पहले रागिनी और मयंक की मुलाकात यूनिवर्सिटी के कैंटीन में हुई थी , जहां दोनों एक ही मुलाकात में एक दूसरे को अपना दिल दे बैठे थे ।
हर मुलाकात अगली मुलाकात की वजह बनता था । सबकुछ कितना मादक था , कितना मधुर था , इसे इन दोनों से बेहतर कौन परिभाषित कर सकता था ।
यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में मयंक रहता था , वो एम. कॉम कर रहा था , और रागिनी भी बी. ए फाइनल ईयर में थी ।
बहुत सी चीजें बिना दस्तक के ही घटित होती हैं जब हमें पता ही नहीं चलता की हम प्रतिक्रिया कैसी दें।
रागिनी घर पहुंची तो मां ने दो लड़कों की तस्वीर रागिनी को दिखाते हुए कहा इन दोनों को ध्यान से देख लो एक का नाम है पुनीत जिनके पिता जी नहीं हैं अब इस दुनियां में , मां के साथ रहता है , एक बहन है जिसकी शादी हो चुकी है । लड़का सॉफ्टवेयर इंजीनियर है , बहुत अच्छे स्वभाव का है , मामाजी ने बताया है ये रिश्ता ।
दूसरी तस्वीर दिखाते हुए मां ने रागिनी को कहा ये हैं राकेश बी.ए करके, अब पापा का बिजनेस संभालता हैं , अच्छा परिवार हैं , पैसों की भी कोई दिक्कत नहीं हैं । तुझे जो भी ज्यादा पसंद आए शाम तक मुझे बता देना , तुम्हारे पापा भी जवाब देंगे आज उनको ।
रागिनी ने गुस्से में कहा मम्मी आपको नहीं लगता कि आप जल्दबाज़ी कर रही हो मेरी शादी को लेकर ।
मां ने बात काटते हुए कहा , रागिनी ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्होंने शादी के बाद भी अपने सपनों को पूरा किया है , हम कौनसा तेरा बुरा चाह रहे हैं ?
तुम्हारी शादी करके समय से हमारी ज़िम्मेदारी भी कम हो , क्या तू ये नहीं चाहती !
रागिनी कुछ भी बोलने की मनोदशा में नहीं थी ।
मां से उसने कहा , मुझे कुछ काम है यूनिवर्सिटी में ,कुछ देर में आती हूं , मां बोलीं ठीक है , पर जल्दी आना ।
रागिनी के कदम मयंक के होस्टल के कमरे में जाकर रुके। वो कमरे में नहीं था ,शायद नहा रहा था ।
रागिनी वहीं कुर्सी पर बैठ गई , और उसका इंतजार करने लगी।
मयंक बाहर निकला तो रागिनी को देखकर स्तब्ध रह गया , उसने पूछा क्या हुआ इस वक्त यहां , सब ठीक तो है न ?
रागिनी ने एक सांस में सारी बात उसे बता दी साथ ही पूछा कोई रस्ता सुझाओ अब तुम ही । तुमतो जानते हो न मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं ?
मयंक ने उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए उसे अपने बहुपाश में आलिंगनबद्ध कर लिया , रागिनी को उसका प्रेम जताना उन्मादित कर रहा था वो उसकी बाहों में खुद को छुपा लेना चाहती थी , उसका यौवन मानो हिलोरे लेने लगा , मयंक कदम-दर -कदम बढ़ता गया और रागिनी उसे तृप्त करती रही ,,
अचानक रागिनी झटके से उठी और मयंक से बोली संभालो खुद को , मुझे घर समय पर जाना है , और मैं तुमसे पूछने आई हूं कि मेरी समस्या कैसे हल होगी , ढंग की कोई युक्ति बताओ ।
मयंक सिर को खुजलाते हुए मन में बोल रहा था , अजीब पागल लड़की है जो मुझे चाहिए उससे तो इसे परहेज है और भला मैं इसके पीछे अपना जीवन बर्बाद करूं ।
तभी मयंक ने कहा .... तुम मेरी बात मानो और हां कर दो शादी के लिए ।
रागिनी ने कहा ... क्या तुम पागल हो गए हो , क्या बोल रहे हो , तुम्हारी पढ़ाई खत्म होते ही हम दोनों शादी करेंगे , हमने तो ये तय किया था न ?
क्या भूल गए ?
मयंक ने उसके गालों को सहलाते हुए कहा नहीं कुछ नहीं भुला हूं मैं , मुझे सबकुछ याद है पर , अभी अगर हम सबकी नजरों में आ गए तो कोई हमारी बात नहीं मानेगा , बेहतर होगा हम दोनों सही समय आने का इंतजार करें ।
तुम एक बार अपने परिवार की मर्ज़ी से शादी कर लो , जब सबको विश्वास हो जाए की तुम खुश हो ,, तो शादी के बाद तुम कोई भी ऐसा बहाना बना लेना जिससे सब तुम्हारी बात पे विश्वास कर लें, समझी ..!
क्या सोच रही हो ???
निश्चिंत होकर घर जाओ और हामी भर दो ।
वो घर आई और उसने वैसा ही किया पुनीत से विवाह के लिए उसने हामी भर दी , सब बहुत खुश थे , अगले महीने की चार तारीख़ को उनके विवाह का दिन तय हुआ ।
विवाह बड़े धूम - धाम से सम्पन्न हुआ । पुनीत बहुत खुश था , हो भी क्यूं न! आखिर कई सालों बाद जो उसके घर में , बल्कि पुनीत के निजी जीवन में खुशियों ने दस्तक जो दी थी ।
रागिनी का हाथ पकड़कर पुनीत उसे कमरे में लाया ।
कमरे में चारों तरफ फूलों की कलाकारी देख कर रागिनी बहुत प्रफुल्लित हो उठी , और एकटक देखती रही ।
पुनित ने उसे आलिंगनबद्ध करके कुछ देर यूं ही उस पल को जीता रहा ,
रागिनी का सौंदर्य , उसका यौवन उसे मानो बरबस खींच रहा हो, वो भी संभलने के पक्ष में नहीं था अभी , ये रात और भी मादक प्रतीत हो रही थी उसे , बस वो अब एक पल भी गंवाना नहीं चाहता था , इसलिए रागिनी के अधरपान को व्याकुल हो उठा , उसके समीप जाकर बैठ गया , पर ये क्या रागिनी तो उसे देख तक नहीं रही थी , मानो किसी चिंतन में डूबी थी , उसने पुनीत को बोला सुनिए मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है और नींद भी बहुत आ रही है , क्या मैं सो सकती हूं ।
मानो अनेकानेक व्यंजन परोसकर किसी ने कह दिया हो .... इसे खाना मत ,केवल ढककर रख दो ।
पर पुनीत हर परिस्थिति को बखूबी संभालना जानता था , उसने खुद को समझाया हो सकता हो प्रथम मिलन के कारण रागिनी शर्मा रही हो , या फिर वास्तव में कुछ तबियत ठीक न लग रही हो , कोई बात नहीं , एक रात की क्या बात है , अनेकों रातें मिलेंगी मुझे , फिर क्या फर्क पड़ता है इस एक खास रात...