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मैं और मेरा टीपू …… भाग - २
जैसे के हम सब जानते है
कि इंसान-इंसान से नफ़रत कर सकता है
मगर! अपने किसी भी पालतू जानवर को उठना ही प्यार करता है जितना अपने आप से,
जैसे के मैंने “पहले भाग” में बताया ही था के मेरा और टीपू के साथ वो नाता बन गया था।
जो कभी भी नहीं टूट सकता था।

एक दिन एक परिवार (यात्री ) गुमने के लिये हमारे गाँव में आया। वह लग रहे थे जैसे पंजाब के रहने वाले हो ! क्यूँकि उनके कपड़ों से पता चल रहा था। बड़ी सी गाड़ी हमारे घर से थोड़ी दूर आगे जा कर रुकी और वो चार मेम्बर थे लेकिन एक छोटी सी वाइट कपड़ो में सुन्दर सी जैसे परियों सी लड़की गाड़ी से बाहर निकली हाथ में टोकरी थी पर इसमें पता नहीं क्या था ? और सिर पे वाइट कलर की टोपी पहनी हुई थी और पैरों में वाइट कॉलर की जुती पहनी हुई थी।

बाक़ी सब का तो पता नहीं मगर जैसे वो मुझे घूर रही थी अपनी बड़ी -बड़ी आँखों से लग रहा था जैसे वो मुझे देख कर पहचान रही हो,
हो सकता है के अपने किसी दोस्त की याद कर रही जो या फिर शायद मेरा चेहरा किसी से मिलता हो। मुझे अंदर से कुछ इस तरह महसूस हो रहा था कि जैसे वो मुझसे मिल कर कुछ कहना चाहती हो लेकिन मुझे घर के अंदर से माँ की आवाज़ आई!
आदर आ कर चाय पी ले और बाद में पापा की चाय दुकान पे ले जा। मैं घर के भीतर तो नहीं जाना चाहता था पर माँ बार बार मुझे आवाज़ लगा रही थी चाय के लिये। मैने जल्दी - जल्दी चाय पी और पापा की चाय लेकर घर से बाहर निकल ही था
के …..

बाक़ी आगे के भाग में …….☑️



© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻