उसकी रज़ा को आख़िरी सलाम...
🧑: क्यों करते हो बेइंतहा मोहब्बत होने का इज़हार?... बमुश्किल है यकीं करना पहले कभी न किया को प्यार।
🧒: झूठ बोलना आदत नहीं मेरी... ज़माने में तुमसे कहीं ज्यादा हसीं कई; देखती नहीं नज़र हर किसी को एक नज़र... एक नज़र में प्यार सभी से होता नहीं।
🧑: बहुत खूब है फ़रमाया... लगता ये हुनर कई सालों में कमाया; खैर जो भी हो दिल में तुम्हारे.. तुम बताओ ज़रा क्यों तुम हमको चाहते।
🧒: सीरत और सूरत की जंग में... तुम्हारी सीरत को चुना मैंने।
🧑: सीरत और सूरत... बड़ी बख़ूबी आती तुमको जवाबदेही; क्या मेरी सीरत पर ही तुम्हारा दिल अटका......
🧒: झूठ बोलना आदत नहीं मेरी... ज़माने में तुमसे कहीं ज्यादा हसीं कई; देखती नहीं नज़र हर किसी को एक नज़र... एक नज़र में प्यार सभी से होता नहीं।
🧑: बहुत खूब है फ़रमाया... लगता ये हुनर कई सालों में कमाया; खैर जो भी हो दिल में तुम्हारे.. तुम बताओ ज़रा क्यों तुम हमको चाहते।
🧒: सीरत और सूरत की जंग में... तुम्हारी सीरत को चुना मैंने।
🧑: सीरत और सूरत... बड़ी बख़ूबी आती तुमको जवाबदेही; क्या मेरी सीरत पर ही तुम्हारा दिल अटका......