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बदलाव
आज का समय सही नहीं चल रहा है ये तथ्य को सभी लोग भलीभाती अवगत हैं| आज मेरे घूमने में कुछ खास चीजे देखने को मिला। मैं आज लगभग 24 वर्ष का होने वाला हूं मुझे आज भी याद है कि मैं अपने कुछ 8 वर्ष पहले अपने नदी को घूमने गया था उस समय हमारी नदी और उसके अगल -बगल बहुत सारे बबूल के पेड़ आम,नीम,सागवान के थे ।जो आज नही है लेकिन वहां तक तो ठीक चल रहा था लेकिन नदी को ही ढकते जा रहे हैं।इतना जमीन का कमी हो चुका है।और हमारे देश में सरकार विरोधी योजनाओं को पैसे के कारण वहां भी इंसानों का बसेरा होता जा रहा है अब वहां तो केवल सड़क इमारतें ही नज़र आते हैं।मेरे मन में उदासी छा गई थी मैं खुद को अकेला ही वहां पाया जबकि लोगो की भीड़ बहुत थी मगर मैं जिस चीज का माहौल चाहता वह वहां नही था। आखिर निराशा भरे मन से मैं अपने घर को वापस लौट आता हूं । लेकिन मेरे मन में कुछ खट–पट सी रह जाती हैं वहां के माहौल को देखकर मेरे चिंतन का विषय नहीं अपितु पूरे मानव समाज को अपने जीवन को अंधेरी कोठरी में देख रहा हूं । अब कहां तक सत्य हैं मेरे पास इसका कोई उत्तर नही है। मैं गलत समझूं उस दिन को जो इंसान ने तो नही बनाए बल्कि उस मनुष्य को जिसे रहने के लिए घर की जरूरत है।और वह अपने घर को बनाने के लिए नदी , पेड़–पौधे को अपने इच्छा की पूर्ति के लिए बेरहम बना पड़ा है।आज मैं चिंतन करने के लायक हूं या नही मुझे नही मालूम लेकिन इतना जरूर पता है कि हम जैसे इंसान ही अपने संसार को बनाने के लिए प्रकृति के समाज को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।जिसमें उन्हें भलीभाती पता है कि हमारे आगे की आने वाला पीढ़ी बेहद ही सुखपूर्वक होगा या नही उन्हें इसका बिल्कुल भी चिंता नहीं हैं।हम तो अच्छे से रह ले कम से कम इसके लिए जो कुछ भी बनाना पड़े मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।उन्हें केवल अपनी और अपने परिवार पड़ी हैं जिसे उन्होंने केवल भोग वस्तु मात्र बनाया है।उसके अभिशाप से नही डरते है।एक बात और भी है कि 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता ये पता है लेकिन उसका बिल्कुल भी चिंता नहीं हैं कि वह किस लिए मनाया जाता है।जितना संरक्षण नही किया जाता उससे ज्यादा ह्रास किया करते हैं।ये परंपरा निरंतर जारी रहेगा।जब तक मानव की अभिलाषाये नही मर जाती तब तक चलता रहेगा।
© genuinepankaj