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बचपन का भूत
बात उस समय की है जब मैं कक्षा छः मे पढ़ती थी। हम एक गाँव मे रहते थे। मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था जिसका नाम अनिल था। वो किसी दूसरे गाँव से हमारे यहाँ पढ़ने आया था। वो अपनी बहन के पास रहता था। वो हम सब बच्चों को अपने गाँव की बाते सुनाता रहता था। उसके गाँव के लोग भूत प्रेत ज्यादा मानते थे । जबकि हमारे यहां भूत प्रेत की बातों पर विश्वास नही किया जाता था।
हम सब सहपाठी उसकी बाते बडे ध्यान से रुचि लेकर सुनते थे। एक बार उसने बताया कि भूत कही भी जा सकता है व किसी का भी रूप ले सकते है। उसी ने बताया कि रात मे भूत किसी की भी आवाज मे हमे बुला सकता है। रात मे कोई आवाज दे तो बोलना मत तीन आवाज देने के बाद बोलना।
हम सबकों उसकी बातों पर पूरा-पूरा विश्वास हो गया था क्योकिं वो बाते ही इतनी रूचिकर ढंग से सुनाता था। मैं बहुत छोटी थी तभी मेरी माता जी का देहान्त हो गया था। हमे हमारी नानी ने पाला था। हम अपनी नानी को अम्माजी बुलाते थे । हम तीन बहने है मेरी छोटी बहन मेरे पापाजी व बीच वाली बहन नानी के साथ सोती थी। मैं बडी थी तो मैं अकेली सोती थी।
हमारा गाँव देहरादून के पास था तो यहाँ सर्दी बहुत होती थी। जब भी रात मे मैं सोती तो अनिल के द्वारा सुनाई गई भूत की कहानियाँ दिमाग मे घूमती रहती थी। मैं बचपन मे बहुत डरपोक थी। डरते हुए हर रात मैं भगवान का नाम लेते-लेते सो जाती थी।
एक रात जब मैं सो रही थी मुझे मेरे पैर बहुत भारी लगे लगा जैसे पैरों पर कुछ भारी सा रखा हुआ है। मै डरती रही भगवान का नाम बोलती रही पर वो भारीपन कम नही हुआ, फिर हिम्मत करके धीरे से रजाई से हाथ बाहर निकाल कर उसको छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। वो कुछ गिलगिला सा था । अब मै और डर गई मुझे लगा कि भूत अपना बच्चा मेरे पैरों पर छोड़ गये। डरते-डरते मैंने अम्मा जी को धीरे से आवाज लगाई अम्मा-अम्मा देखों भूत अपना बच्चा मेरे पैर पर छोड गये। अम्मा जी भूत प्रेत नही मानती थी। बडी ही निडर महिला थी। अम्माजी ने मेरी रजाई उछाल दी बोली मै देखती हूँ भूत के बच्चे को।
अम्माजी हंस कर बोली देख वो बिल्ली बैठी थी तेरी रजाई के ऊपर । मै बहुत डरी हुई थी। बिल्ली को भागते देखकर कर मैंने चैन की सांस ली।
उस रात अगर मैं अम्मा जी को ना जगाती तो जीवन भर मै इसी गलतफहमी मे रहती थी कि वो भूत का बच्चा ही था। पर मेरा शक दूर हो गया कि वो कोई भूत नही था। इस कहानी से मै यही संदेश देना चाहती हूँ कि भय का ही भूत होता है।

© रीवा